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करता हूं। चित्र विलम्ब से तैयार होने के कारण कुछ चित्र यथास्थान नहीं दिये जा सके हैं. परन्तु चित्रों के नीचे दिये सन्दर्भ से पाठकगणों को असुविधा नहीं होगी, फिर भी कोई विसंगति पाठकों के ध्यान में पाये तो उससे प्रकाशन समिति को अवश्य अवगत करायें ।
ग्रन्थ प्रकाशन में समिति के सभी कार्यकर्ताओं विशेषकर श्री नाथलाल जी. श्री हनुमान सहाय शर्मा, कु. विजया जैन का आभारी हूँ जिन्होंने मेरी अनुपस्थिति में प्रूफ संशोधन का कार्य करते हुए छपाई कार्य निरन्तर चालू रखकर ग्रन्थ को समय पर प्रकाशन करने में भारी सहयोग दिया है।
ग्रन्थ की छपाई के लिए प्रिन्टिग सेन्टर जयपुर के संचालकों का भी धन्यवाद करता हूं जिन्होंने छपाई के मध्य आयी बाबाओं का सामना करते हुए छपाई कार्य सुन्दर एवं रूचि लेकर पूर्ण किया है।
मुझे एवं श्री दिगम्बर जैन विजयाग्रन्थ प्रकाशन समिति के सभी कार्यकर्ताओं तथा जैन समाज कोटबाडा को अत्यन्त प्रसन्नता एवं गर्व है कि इस अप्रकाशित बृहद् ग्रन्थ का प्रकाशन परमपूज्य गणिनी आर्यिका, सम्यम्ज़ान शिरोमणि १०५ श्री विजयामती माताजी के दीक्षागुरु, कठोर तपस्वी सन्मार्ग दिवाकर निमित्तज्ञान शिरोमणि परम् पूज्य १०८ श्री विमलसागरजी महाराज की ७५वीं हीरक जन्म जयन्ती के उपलक्ष में प्रकाशित किया जा रहा है। हम सबका उनके चरण कमलों में वारम्बार श्रद्धा भक्ति सहित नमस्कार है तथा गुरुवर्य आचार्य श्री की शतायु होने की मंगल कामना करते हैं ।
पुनः लोक के समस्त पूज्य आचार्यों, साधुओं एवं साध्वीयों के कारणाविन्दों में त्रिवार नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु ।
गुरुभक्त महेन्द्र कुमार जैन "बडजात्या"
सम्पादक
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