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________________ भोपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद] [१२३ भावार्थ-भो मन्त्रिन ! इसके साथ छत्र, चमर, घण्टा, सिंहासन आदि समस्त राजचिन्ह हैं । काहला, झांझ, मंजीरा, डोल-ढमाका सभी प्रकार के सुन्दर मनोहर वाजे भी हैं । अन्य भी अनेक राजकीय सामग्री से सम्पन्न है। अत: यह निश्चित ही कोई राजा होना चाहिए या राजकुमार हो । अबश्य ही यह कोई विशष पुरुष है ।।११४॥ अतएव - स्थातव्यञ्चभवद्धि भॊ माध्यस्थं मन्त्रि सत्तमः । एवमुत्वा कधाभूपो वजितोऽपि बुधजनैः ॥११५॥ कारयामास कन्यायावियाहं शुभवासरे । स तेन कुष्ठिना सार्द्ध स्वहस्ताल्लोक निन्दितः ॥११६॥ अन्वयार्थ-(भो) हे (मन्त्रि सत्तमः) सचिवोत्तम ! (भवद्भिः) आप को (माध्यस्थम्) मध्यस्थ भाव से (स्थातव्यम्) रहना चाहिए (एवं) इस प्रकार (उक्त्वा) कहकर (बुधैर्जनै:) विद्वानजनों के द्वारा (वजितोऽपि) रोके जाने पर भी (क्र धा) क्रोधित (भूप:) भूपति ने मन्त्रियों को चुप कर दिया पुनः (शुभवासरे) शुभ दिन में (लोकनिन्दितः) लोक निन्दित (स) उस राजा ने (कुष्ठिना सार्द्ध) कोढी के साथ (स्वहस्तात् ) अपने हाथों से (कन्यायाः) पुत्री-कन्या का विवाह (कारयामास) कर दिया। भावार्थ--तब राजा ने अपने मन्त्रियों को यह कह कर चुप करा दिया कि आपको मध्यस्थ भाव से रहना चाहिए। क्रोधित राजा ने शुभ दिन अपनी पुत्री का लोक निदित विवाह उस कोही के साथ अपने हाथों से कर दिया ।।११५, ११६।। धिक्त्वांधिक तवमूढत्वं धिग्गर्व पापकारणम् । प्रस्थानेऽपि महीनाथो येन जातो दुराग्रही ॥११७।। तद्विलोक्य तवा माता तस्यास्सौभाग्य सुन्दरी । शोकञ्चकार हा कष्टं कि कृतं कर्म भूभुजा ॥११॥ अन्वयार्थ-(तदा) विवाह के पश्चात् (तद्विलोक्य ) उस कार्य को देखकर (तस्याः) मदनसुन्दरी की (माता) भा (सौभाग्यमुन्दरी) सौभाग्यसुन्दरी राजा के प्रति (धिकत्वाम्) हे राजन् तुम्हारे लिए धिक्कार है (तव) तुम्हारी (मूढत्व) मुर्खता को धिक्कार है (पापकारणम ) इस पाप के कारणोभूत (तव) तुम्हारे (गर्वम ) अहंकार को (धिक्) धिक्कार है (येन) जिस घमा के कारण से (महीनाथो) राजा होकर भी (अस्थाने) अनावश्यक स्थान में (अपि) भी (दुराग्रही) कदाग्रही (जातः) हुए (हा) हाय-हाय (कष्टं) महादुःस्त्र है (भूभुजा) राजा के द्वारा (किं) क्या (कर्म) दुष्कर्म (कृतम) किया गया इस प्रकार (शोकम) शोक (चकार) करने लगी। भावार्थ-प्राणियों को शुभाशुभ कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है । कहाँ देवामना
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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