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________________ करना, कुण्डनपुर, काञ्चनपुर, कङ्कणपुर में समस्या पूरित करना हजारों कन्याओं से विवाह होना, बारहवे वर्ष का लगभग पुर्ण होना, मार्ग में ऊर्जयन्तगिरि पर भक्तिपूर्वक सिद्धचक्र बिधान व्रत करना, माना देशों पर विजय सेना संग्रह, प्रभुत्व स्थापन, उज्जयिनी में प्रिया महल में एकाकी प्रबेश, गुप्तरूप में अपनी माता और प्रिया की वार्ता सुनना तथा मैना का दीक्षा का निर्णय सुनना में आगया माँ कहकर किबाड़ खलबाना, माता का दर्शन, प्रिया मिलन, अपना वैभव दिखाना, मदनसुन्दरी को आठ हजार रानियों में शिरोमरिंग पट्टरानी बनाना तदनन्तर उज्जयिनी पर आक्रमण करना, दुत भेजना, कम्बल धारण कर श्वसुर को आदेश देना तथा आदेश स्वीकृत होने पर पुन: उस कटोर आदेश को रद्द कर हाथी पर चढ़कर वैभव के साथ मिलने का आदेश देना तथा आठ हजार रानियों के साथ राज्य वैभव के सुख भोगना आदि का वर्णन सम्यक् प्रकार किया गया है । इस षष्ठम परिच्छेद में १५० श्लोक हैं। सप्तम परिच्छेद में श्रीपाल महाराज के अन्तस्थल में पिता के वंश और नाम प्रकट करने की महत्वाकांक्षा का होना, चाचा को जीतने के लिए ससैन्य रानियों के साथ चम्पापुर की ओर प्रस्थान करना, मार्ग में अनेक राजाओं को वश में करना, अरिदमन की चम्पानगरी को घेरना, अरिदमन का कोप से लाल होना और युद्ध के लिए सुभटों के साथ प्रस्थान करना, किन्तु मन्त्रियों के कथनानुसार दोनों क मा युः हेग मारे द्वारा बीरदमन का बांघना वीरदमन का लज्जित होना तथा श्रीपाल के द्वारा चाचा वीरदमन से क्षमा याचना करना तथा वैराग्य को प्राप्त हुए वीरदमन का श्री ज्ञानसागर मुनीन्द्र के समीप दीक्षा लेना तथा श्रीपाल के पुण्य महिमा का प्रदर्शन, पितृ राज्य की प्राप्ति एवं राज्याभिषेक पर्यन्त कथानक का उल्लेख है । इस सप्तम परिच्छेद में १४ प्रलोक है। अष्टम परिच्छेद में---चम्पापुरी नगर के वन प्रदेश में अवधिज्ञान श्रुतसागर मुनिराज का प्रागमन, वनपाल के द्वारा समाचार प्राप्त कर श्रीपाल महाराज का प्रजा सहित मनि बन्दना के लिये गमन, ग्रानन्द भेरी बजना वहाँ जाकर गुरुवन्दना कर धर्म श्रवण करना। धर्म क्या है कितने प्रकार का है इत्यादि प्रश्नानसार मनिराज के द्वारा उभयधर्म का उपदेश १२ व्रत, ८ मूलगुण, कन्दमूल त्याग, रात्रि भोजन त्याग, आहार दान विधि, पात्र दाता के गुणों का विवेचन भगवान का पञ्चामत अभिषेक विधान, स्त्री प्रक्षाल विधान का विशद सत्य विश्लेषण, सल्लेखना, ग्यारह प्रतिमा का स्वरूप, भक्ष्याभक्ष्य विचार श्रावक व्रत पालन का फल अच्युत स्वर्ग तक की उपलब्धि एवं सम्यधर्म का माहात्म्य बताया है। नवम सर्ग-धर्म श्रवण कर श्रीपाल माहाराज के द्वारा अपने जीवन में उपस्थित विपतियों का कारण पूछना-कृष्ठो होना, बचपन में राज्य मिलना, फिर राज्य त्याग, मैंना से विवाह, सागर में गिरना आदि का हेतु एवं सबिस्तार पूर्वभव पूछना पुनः गुरुदेव द्वारा यथार्थ सकारण हेतु निरुपण करना इत्यादि, वर्णन इस परिच्छेद में है । आचार्य श्री ने बताया कि तुम श्रीपाल पूर्व भव में श्रीकान्त राजा थे और पट्टरानी मैनासुन्दरी तुम्हारी श्रीमती रानी थी। सुगुप्ताचार्य से गृहति व्रत को श्रीकान्त ने भी कुसंगति में पड़कर छोड़ दिया था उस त भङ्ग का फल राज्य त्याग है । सात सौ सुभटों के साथ अबधिज्ञानी मुनि को कुष्ठो कहने XVI
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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