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________________ पाती है पुत्र श्रीपाल माता का विशेष स्वागत करता है और सास ज्ञात कर मदनसुन्दरी भी स्वागत कर पतिदेव का परिचय पूछती है । तब माता कहती है कि हे पुत्री ! तुम श्रीपाल को चम्पापुरो के सिंहसेन राजा और कमलावती महिषि का पुत्र जानो। पिता सिंहसेन का स्वर्गवास हो जाने पर, बालक श्रीपाल को राजगद्दी पर बैठा दिया गया किन्तु चाचा वीरदमन राज्य सम्हालता था, उसके मन में पाप आ गया और श्रीपाल को मारने का षड़यन्त्र रचने लगा, तब पुत्र की रक्षा के लिये मैं अपने बच्चे को लेकर वाराणसी भाई के घर में आ गई, वहाँ देवयोग से इसको कुष्ट रोग हो गया और परिकरों सहित यह उन में आ गया इस उपाख्यान को सुनकर मदनसुन्दरी को बहुत संतोष हुा । पुनः मदनसुन्दरी के पिता प्रजापाल जब पुत्री को कामदेव के समान सुन्दर रूपधारी पुरुष के साथ देखते हैं तब पुत्री के शील पर संदेह कर बैठते हैं तब मन्त्री ने यथार्थता बताकर संदेह दूर किया तदनन्तर पिता पुत्री मदनसुन्दरी एवं श्रीपाल की अनिशय प्रशंसा करते हैं और सिद्धचक्र की महिमा स्वीकार करते हैं तथा श्रीपाल को राज्य तना चाहते हैं किन्तु वह अस्वीकार कर देता है तब वह प्रजापाल राजा सन्तोष रूप परिणाम से और अधिक प्रभावित होता है और प्रेम से अनेक देश, कोष पुर, ग्राम गजादि से सम्मानित कर घर चला जाता है तथा सिद्धचक्र का प्रभाव कर्पूर की गंध के समान सर्वत्र फैल जाता है । इस तृतीय परिक्छेद में १८२ श्लोक हैं। चतुर्थ परिच्छेद में श्रीपाल का व्यापार हेतु निकल जाना तथा सिद्धचक्र की शपथ पूर्वक पत्नो एवं माता से १२ वर्ष में लौटकर आने का वादा करना, भगकच्छ नगर में पहंचना, घबल सेठ के जहाज अचल होना, ३२ लक्षणधारी श्रीपाल को ले जाना, सेठ द्वारा उस श्रीपाल का स्वागत, एवं श्रीपाल के स्पर्शमात्र से जहाज का चलना, पुन: सागर में वर्बरराज तस्करों का आक्रमण और भोपाल से उनका परास्त होना, उपहार में ७ जहाज पाना, रत्नद्वीप में यानों का पहुँचना एवं सहस्रकूट चैत्यालय का दरवाजा खोलना और विद्याधर कन्या मदनञ्जूषा से श्रीपाल का विवाह होने पर्यन्त कथा का उल्लेख है । इस चतुर्थ परिच्छेद में १६७ श्लोक हैं। पञ्चम परिच्छेद में रत्नहोप में व्यापार कर सेठ का प्रस्थान करना और मदनसञ्जूषा पर आसक्त होना, श्रीपाल को सागर में गिराना और देवों द्वारा सती के शील का रक्षण होना, सागर को हाथों से पार कर श्रीपाल का दलवर्तन पत्तन में पहुँचना, धनपाल राजा की पुत्री गुरामाला से विवाह होना एवं जहाजों का भी दलवर्तन पत्तन पहुँचना एवं राजदरबार में श्रीपाल को देखकर पुनः उसे मरवाने का षड्यन्त्र रचना, श्रीपाल को भाँड पुत्र सिद्ध करना किन्तु मदनमञ्जूषा के द्वारा भेद खोलना प्रादि का वर्णन है। तथा उत्तम क्षमा को धारण करने व वाले श्रीपाल के द्वारा सबको क्षमा करना. धवल सेठ को निमन्त्रण देना, और श्रीपाल पंखा झलना किन्त भय से धवल सेठ का स्वयं मर जाना और श्रीपाल की प्राज्ञानसार । र धवल सेठ के घर अपने ७ यान लेकर शेष वापिस भेजने पर्यन्त कथा का सम्यक् सम्मुलेख है । इस पञ्चम परिच्छेद में २०६ श्लोक हैं.। छटे परिच्छेद में भिन्न भिन्न राज्यों में जाकर चित्रलेखा आदि हजारों कन्याओं से विवाह करना, इसी प्रकरण में गीत नत्यादि करते हुए वाद्यवादन कर राजा का चितरजन XV
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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