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________________ [धीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद (२) अनावृष्टि-प्रावश्यकता से कम वर्षा होना । (३) मूषिका–नहों द्वारा फसल को बरबादी होना । (४) शलभा-टिड्डी दल द्वारा खेती का नाश । (५) मुका-तोते आदि द्वारा उपद्रव होना। (६) स्वचक्र-अपने ही राजकर्मचारियों द्वारा षड्यंत्र । (७) परचक्र—अन्य राज्यों द्वारा षडयंत्र, चढ़ाई आदि इस प्रकार में सात ____ ईतियाँ (स्मृताः) मानी गई हैं । यत्र भोगोपभोगादि सम्पत्याः सज्जनास्सदा । कान्तिस्म जिनेन्द्राणां यात्रां यान्तु स्पृहांमुदा ॥१६॥ प्रन्ययार्थ--(यत्र) जहाँ जिस देश में (सदा) हमेगा (सज्जनाः) सज्जन पुरुष (भोगोपभोगादि सम्पत्या) भोग और उपभोग की सम्बदाओं के साथ (जिनेन्द्राणां) जिनेन्द्र भगवान् की (यात्रां) यात्रा करने को (यान्तु ) जाने के लिए (मुदा) हर्ष से आनन्द (स्पृहां। स्पर्धा (कुर्वान्तिमस्म) करते थे। मावार्थ---उस देण के पुण्यात्मा भव्यजन भोगोपभोग में लीन थे। उनके पास भोग और उपभोग की सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी तो भी धर्मानुराग इतना प्रगाढ़ था कि जिन यात्रा, दर्शन, जिन पूजनादि शुभ कार्यों के लिए होड प्रतिस्पर्धा करते थे। हर एक भव्य सोचता मैं पहले जाऊँ प्रथम मैं पूजा भक्ति करू आदि । यत्र श्रीमज्जिनेन्द्राणां भव्याः सम्यक्त्यपूर्वकम् । पायदानं जिनेन्द्रार्चा शीलं पयों पचासकम् ॥२०॥ धर्मकृत्वासुखंभुक्त्वा दीर्घकालं मनोहरम् । साधयन्तिस्म ते प्रान्ते नित्यस्वर्गादिकमुत्तमम् ।।२१।। अन्वयार्थ- (यत्र) जहाँ (सम्यक्रवपूर्वकम्) सम्यग्दर्शन सहित (भयाः) भव्यजीव (श्रीमज्जिनेन्द्राणां) श्रीमत् भगवान् अरहंत प्रभु की (अर्चाम् ) पूजा (पात्रदान) सत्यपात्रों को दान देना तथा (शील) भीलधर्म-ब्रह्मचर्य पर्वोपत्रासकम् ) पर्व के दिनों में उपवास आदि करना तथा उपर्युक्त प्रकार (धर्म) धर्म को (कृत्वा) करके (दीर्घकालं) बहुत काल तक (मनोहरम् ) सुन्दर रूप (सुख) सुख सम्पदा (भुक्त्वा ) भोगकर (प्रान्ते) अन्त समय में (ते) वे भव्यात्मा (उत्तमम् ) श्रेष्ठतम् (स्वर्गादिकम् ) स्वर्ग आदि के सुख को (साधयन्तिस्म) सिद्ध करते थे। भावार्थ—उस अवन्ति देश में सर्वत्र पुण्यात्मा भव्य जीव निवास करते थे। सभी सम्यक्त्व गुण से मण्डित थे । प्रतिदिन श्री जिन भगवान् की अप्टविध पूजा करते थे । सतत्
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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