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________________ दारिका प्रतिक्रमणाला मंजसाए पक्खिविऊण समुद्दे छढा, ते किच्चिरस्मवि उच्छलिया, एगेण दिट्ठा मंजमा, गहिता, मणसे पेच्छा, ताहे पुच्छइ- कति- निन्दायाँ चो दिवसो छ्ढाणं, एगो भणति-चउत्यो दिवसो, मो कब जाणति, तहेव बितियादणे कहेति-तम्स चाउत्पजरो नेण जाणति। चित्रकरभ्ययने ल अणं कहेह, दो सवत्तिणीओ, एक्काए रयणाणि अस्थि, सा इयरीए ण विस्संमड़, मा हरेज्ज, ततो गाए जत्थ निक्समती पवि-16 ॥५१॥ संती व पेच्छति तत्थ घडए छोडण ठवियाणि, ओलित्तो घडओ, इयरीए विरई गाउं रयणाणि हरियाणि, तहेब घडओ ओलित्तो, इयरीए गायं हरियाणत्ति, तो कह जाणइ ओलित्तए हरियाणिाने, बियदिणे मणइ- सो कायमओ घडो, तन्थ ताणि परिमासंति, &ा हरिएसु णस्थि । अण्णा कहहि,मणइ-एगस्म रणो चत्तारि पुरिसरयणा,तं. नेमित्ती रथकारो सहस्सजोधी सहेव विज्जो य 18 दिण्णा चउण्ह कण्णा परिणीया णवरमेकेण ॥शाकही, तस्स रष्णो अहमुंदरा ध्या, सा केणत्रि विज्जाहरण हडा, ण णज्जड़ कतोचि अक्वित्ता, रण्णा भाणयं- जो कण्णगं आणति नस्मेव सा, तओ नेमित्तिएण कहितं- असुगं दिसं नीता, रहकारेण आगा सगमणो रहो कतो, ततो चत्तारिवि तं विलग्गिऊण पधाविया, अंमतो विज्जाइरो, सहस्मजोधिणा सो मारितो, तेणे मारिज्जISI सणं दारियाए सीस छिणं, विजण संजावणेसहीहिं उज्जियाविना, आणिता घरं, राइणा चउण्हवि दिण्णा, दारिया भणति- किहDI अहं चउण्हवि हामि , तो अहं अग्गि पविमामि, जो मए सम पविसति तस्माई, एवं होतुति, तएि समं को अग्गि पविसति । *किस्म सा दातवा ?। बिनियदिणे मणनि- निमित्तिणा निमित्तण णातं जहा एस न मरातित्ति तेण अन्भुवगतं, इतरेहिं नेच्छितं, 181 दारियाएवि नट्ठाणस्म हेट्ठा सुरंगा वाणिना, नत्थ नाणि चितगाए गुणाणि, कट्ठाणि रयिताणि, अग्गी दिण्णो जाहे ताहे ताणि सुरंगाए निस्परिनाणि, तम्म दिण्णा । अण्णं कहेहि सा भणनि-एगाए अविरतियाए पगतं जतियाए कडगा मग्गिना, ताण NCAM दारियाए साम हिनारिवि तं विलग्गिऊण पधादिया, तो नेमित्तिएण कहितं- असुगंदिर -541
SR No.090463
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1986
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Story, & agam_aavashyak
File Size9 MB
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