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________________ प्रतिक्रमणासो चिनेति,तातियो मम पिता,नंग चित्तममं चिनेणं पुन्यविदनंपि बहुं नियुक्ति, संपति जो वा सो वा आहारो, सोय सीतलो निन्दायों ध्ययने ला रिसो होहिति ? तो आणिते मगरचिंताए जाति, चउत्थो तुम, कह, सन्चोवि नाच निनति- कतो एत्थ मोरपिच्छ, जदिविचित्रकर आणितेल्लग होज्जा तोवि ताव दिडीए मुटु निझाइज्जति, सो मणनि- सच्चगं मुक्खा, राया गतो, पिता से जिमितो, माविदारका ॥५८॥ सपरं गता,रायाए वरमा पेमिना, तीए मातापितं मणितं- दोहोति. भण्णाहू य- अम्हे दरिदाणि, किह रण्णा सपरिजणस्स पूर्व काहामो ?, ताहे दचं से रण्णा दिल, तेहिदि दिण्णा । दामी अणाए सिक्खाविता-ममं रायाणगं च संबाधती अक्खाणगं पुच्छेज्जासित्ति, जाहे राया सोतुकामो ताई दासी मणति-सामिीण ! राया पवट्टति, किंचि अक्वाणगं कहेहि । भणति- कहेमि, एगस्स धूता अलंघणिज्जाणं तिहं बरगाणं मातिमातिपितीहि दिण्णा जाब निबहणाणि आगताणि,सा रचिं अहिणा खइता मना, एगो तीए समं चितं विलग्गो, एगो अणसणं पयट्ठो, एगेण देवो आराधितो, तेण से संजीवणो मंतो दिनो, उज्जीविना चिता, तिष्णिवि उवद्विता, कस्स दानव्या ?, कि सरका- एक्का दोण्हे तिण्हं वा दातुं, तो अक्खाहत्ति, मणति-निदाइयामित्ति सुवामि, कलं कहेहामि, तस्स अक्खाणगस्स कोतुहल्लणं रितियपि दिवस तसिवि वारओ आणत्तो, ताहे सा पुणो पुच्छिता मणनि- जेणल उज्जिताविता सो से पिता, जेण समं उज्जीविया सो से पितो माया, जो अणसणगं पविठ्ठो तस्स दातव्वत्ति ॥ अण्णं कहेहि, सा भणति-एगस्स राइणो सुवण्णगारा भूमिघरे मणिरयणकउज्जोता अणिगच्छन्ता, अंतउरस्स आमरणगाणि घडाविज्जति, एगो मणति-का पुण वेला वकृति , एगों मणति-रत्ती वट्ठति, मो कहं जाणति जो ण चेदं ण पूरै पेच्छति, सा मणति-निद्दाइया । " वितियदिणे कहेति- सो रति अंधओ नेण जाणति, अणं अक्वाहिति । भणनि- एगो राया, तस्स दुवे चोरा उवट्ठविना, तेण से FAST
SR No.090463
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1986
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Story, & agam_aavashyak
File Size9 MB
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