SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिक्रमणा * तरितचा य पतिपणया मरितवं वा समरे समथएणं । असरिसवणुप्फेसया नहु सहितध्या कृले पसूय- निन्दायां ध्ययने एणं ॥ १२५६ ।। गीतीए भावत्यो, जथा केह लद्धजसा मामिसंमाणिया सुमडा रण पहारितुवरता मज्जमाणा एगण सपक्ष चित्रकरजसावलंबिणा अप्फालिता- नो मोभिस्सह पद्रिप्पहरा गच्छमाणनि, तं सातुं पडिनियत्ता, ते य ठिता, पडिता पराणीए, भग्गं च | दारिका ॥ ५७॥ हिं पराणीय,संमाणिया य पभुणा,पच्छा सुभडवाई मोभीत बहमाणा,एतं गीतस्थं सोतु तस्स चिंता जाता-एमेव संगामणीया पन्चज्जा, जदि ततो परामज्जामि तो असरिसजणेण हीलिज्जामि,एस समणपच्चोगलितोत्ति पडिनियमो,आलोइयपडिक्कतेण आयरियाण इच्छा पडिपूरिता, एवं भावे पउिचायणत्ति ॥ निंदावि छविधातहेव, नत्थ उदाहरण दोण्हं कण्णगाणं वितिया कण्णगा चित्तकरदारिया,जथा-एगौराया दुर्य पुच्छति181 किं मम नत्यि जे अण्णरातीणं अस्थि , चित्तममा नस्थिति, आणता णिम्माणिया, चित्तकारकर्मणीए विरिक्का, एगस्स चिन-31 कारगस्स घीता पितुं भत्तं गहाय गच्छत्ति, राया मग्गेण आमेण वेगविप्पमुक्केण एति, सा पलायती किवि फिडिता गता, पिता से तं ठवितूण सरीरचिताए गतो, नीए यण्णेहि नस्थ कोट्टिमे मोरपिच्छं लिहित, रायावि तस्य चंक्रमणयं करेति, सावि अंणचित्तणं अच्छति, रायाए पिच्छे दिट्ठी गता, पहामिति इत्यो पमारितो, नहाणि दुक्खाविताणि, ताए हसितं, मणति य-निहिं पादेहिं मम मुक्खासणं न ठाति जाब चउन्ध मम्गामि, नवरं तुमं चउत्थो, राया पुच्छति- किहत्ति ?, सा भणनि- अहं च पिताए कूर ५७॥ आणामि जाव एगो पुरिसो नगरमझे आस वाहेति, नन्धि से घिणा मा किहवि किंचि मारिज्जामिान, तत्य अहं सएहि पुष्णहि जीविता, बिनियो राया, नेण चित्तकराणं विरिक्का सहा, तत्थ एक्केव के कुईवे पहुगा मणूसा चित्तकरा, मम पिता एककल्लओ -
SR No.090463
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1986
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Story, & agam_aavashyak
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy