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प्रत्याख्यानचूर्णिः
॥३२२॥
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समुदिई, एवंविधं गुरूहि अणुण्णायं मंदिसावेतुं आलियाए कप्पति मोतु, बीयभंगे तद्देन विधिगहितं, असं पुण काकसी-1Bाप यालादिदोसदुई एरिर्स ण कपति, ततिए अविहिगदितं वीK२ उक्कोसमाणि गहियाणि, एवं मे कायन्वंति, अहवा कारणे असं परणादिमु गहिय, पच्छा मंडली रातिणिएण विधीए भुतं,एत्थवि आवलिया ण कप्पति,बउत्थे ण कप्पतित्ति । भावपचक्याणं गतं, | पचरयाणंति पदं समत्तं । पच्चकम्बाणेणः ।। १७०९ ॥ तेण पच्चक्खाणेण पञ्चक्खातो पच्चस्ताविततो पमूतिया मवंति, तत्थ पच्चखातओ आयरितो पच्चक्खावितओ सीसो, नत्थ भंगा-जाणनो जाणयस्स पच्चक्खानि सुद्धं पच्चक्खाणं, जाणतो अजाणयस्स जाणावेतु पनचक्खानि सुद्ध, अजाणतो जाणयस्स पच्चस्वाति ण मुद्ध, पभुसंदिहादिसु विभासा, अयाणगी अयाण-IM गस्स पच्चक्खाति असुद्धमेव । एल्थ गावीतो सीवीणियवीसमणत्याणेसु ओलोएन्तो जाणति गोवालो सामी घरे,तातो मुहं रक्सिज्जति, चितियं गोचालो ण याणति कह रक्खी , ततिए मामी पहितणडातोवि जाणति, चउत्थे सामी ण जाणनि जा गोवालोवि ण जाणवित्ति उपसंहारो कायचो,जाणतो जाणएणं पच्चक्खाविति सुद्ध१जाणतो अजाणएणं पचक्खावेति, केणति कारणेण पच्च| क्खावेततो तो सुद, अणिमिनं ण सुज्झति २ अयाणतो जाणएणं पच्चक्खावेति सुद्धं ३ अयाणन्ते अयाणएणं ण सुद्धति ४॥
पच्चक्षायध्वयं पुण दविहं-दन्वंमि असणादी भावम्मि अण्णाणादित्ति ॥ इयाणि परिसा, सा पुर्व मणिया जहा हेट्ठा सामातियणिज्जुत्तीए सेलघणकुडगवालणिः ॥ १३९ ॥ पुष्वमणिया गाथा, इह पुण सेमो मण्णाति, सा परिसा दुविझा-उवलाठविया अणुवठविया य, उवद्विताए कहेयवं, इयराए णदि, उपढिना दुविहा-संमोवहिता मिच्छोवहिताय, मिच्छावडिया जहा||३२२॥
गोविंदा, संमोवडियाणं कहेयन्वं, णनगणं, ममोवाट्टिया दुविहा- विणतोबहिना अविणतोबविता य, अविणतोवष्टियाए ण