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प्रत्याख्यान चूर्णिः
॥२९॥
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। संविमागो, तत्थ सामातियं नाम सावज्जोगपरिवज्जणं णिवज्जजोगपरिसेवणं च, तं सावरण कह काय ?, सो दुविहो- शिक्षाबत
सामायिक इविपत्तो अण िपत्तो य, जो सो अणिधिपत्तो सो चइयघर वा साधुसमी वा घरे वा पोसहसालाए वा जत्य वा चीसमति । | अच्छति वा णिवावारो सम्वस्थ करति सच, चउसु ठाणेमु णियमा कायन्वं, तंजहा-बेतियघरे साहुमूले पोसहसालाए वा घरेलू वा आवासं करेंतोति, तत्थ जदि साहुसगासे करति तन्थ का विही, जदि पारपरमयं णत्यि जइवि य केणइ समं विवादो णस्थि जदि कस्सति ण धरति मा तेण अंछवियंछियं कडिज्जति, जदि धारणगं दट्टण ण गिण्हति मा पटिमज्जिद, जति य बावार ण बावारेति ताहे परे चेव सामातियं काऊण उवाहणातो मोत्तूर्ण सचित्तदवविरहितो बच्चति, पंचसमिओ तिगुत्तो | इरियाए उपउत्तो जहा साहू भासाए सावजं परिहरंतो एसणाए कहूँ लेछु वा पडिलेहित्तु पमज्जित्तु एवं आदाणणिक्षेवणे खेलसिं| पाणे ण विगिचति, निगिंचिन्तो वा पडिलेहिय पमज्जिय पंडिले, जत्थ चिट्ठति तत्थ गुत्तिणिरोध करेति,एताए विएि गंना तिवि5 हण गमिऊग साघुणो पच्छा साधुसक्खिय सामातिय करेति-करोमि भंते ! सामाइयं दुविहं तिविहेणं जाद साहू पज्जुवासामिति काऊणं, जड़ चेतियाई अस्थि तो पढमं चंदति, माहूणं सगासातो रयहरणं निसज्ज वा मग्गति, अह घरे तो से ओग्गहितं रयहरणं
अत्यि, तस्स असति पोचस्म अंतणं, पच्छा इरियावाहियाए पडिकमइ, पच्छा आलोइत्ता वंदइ आयरियादी जहारायणियाए, &Iपुणोषि गुरुं बंदित्ता पडिलेडेमा णिविट्ठो पुरा पढइ वा, एवं चेइएसुवि, असइ साहचेइयाणं पोसहसालाए सगिहे वा, एवं || ॥२९९॥
सामाइ वा आचस्सयं वा करेइ, तन्थ नवरि गमणे नत्थि, मणइ-जाब णियम समाणमि । जो इविपत्तो सो किर एती सन्धिडीए एइ तो जणम्स अन्था हानि, आदिता प साहणो सप्परिसपरिग्गहेणं, जति सो कयमामातितो एति ताए आमहत्थिमादि
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