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श्री
आवश्यक
चूण उपोवनात निर्युक्तौ
॥३१८॥
अभिजाते अभिप्याओ दवजुत्ते य खे० सत्त पिंडेसणाओ मत्त पाणेसणाओ, ताहे रना सव्वत्थ संदिडा, लोगेणवि परलोककविणा कता, सामी आगतो, ण य तेहि पगारेहिं गिण्हति, एवं च ताव एवं इओ य सयाणिओ पं पधाविओ दहिवाहणं गेण्डामित्ति, णावाकडरण गतो एमाए रतीए, अर्चितिया चव गगरी वेढिया, तत्थ दहिवाहणो पलातो, रमा जग्गहो घोसितो, एवं जग्गहे दिने दाहण वो धारणी देवी, तीसे धूया वसुमती, सा सह धूयाए एगेण ओट्ठिएण गहिता, राया नियत्तो, सो उड़ितो चिनेति, भणड य-एस मे भज्जा, हमें च दारिये विक्के, सा देवी तेण मणोमाणसिएण दुक्खएण अपणो धूयाए य एम ण णज्जति किं ममं पाहिति, एवं वार्ड, एवं मा अंतरा कालगता, पच्छा तस्स उट्टियस्स चिंता जाता दुई मए मणितं महिला होहितिनि, एतं न भणामि, मा एसावि मरिहिति तो मे मोल्लंपि ण होहिति, ताहे अणुवसंतेण आणिीता, वीडीए ओडिया, घणवाहेण दिट्ठा अणलंकितलावचा, अवस्सं रम्रो ईसरस्स वा एसा मा आवई पावउत्ति जत्तियं सो भणति तत्तिएण मोल्लंण गहिता, तेण समं ममं सुहं तत्थ गगरे आगमणं गमणं च होहितित्ति, तेण नियगं घरं गीता, पुच्छिता का सि तुमंति, ण साहति, पच्छा तेण प्रतत्ति गहिता, एवं सा हाणिता, मूलिगावि भणिता – जहा एस तुज्झ धूयत्ति एवं सा तत्थ जहा नियए घरे नह सुहंसुण अच्छति, तापवि सो सपरिजणो लोगो सीलेण य विषएण य मच्वा अप्पणिज्जओ कओ, ताहे ताणि भांति सव्वाणि - अहो हमा मीलचंदणत्ति, ताहे से वित्तियंपिय णामं कयं चंदणत्ति एव य कालो वच्चति । ताए य धरिणीए अवमाणो जायति मच्छरिज्जति य, को जाणति कयाइ एस एवं पडिवज्जेज्जा १, ताहे अहं घरम अस्सामिणी भविस्यामि तीसे य वाला अतीव रमणिज्जाऽतिकिण्हा य, अभया कयाई सो सेट्टी मज्झ जणविरहिते आग
ज
चन्दन - बाला वृत्त
।। ३१८।।