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अर्ध–(एसा) आ (खलु) निश्चे (लेसाणं) लेश्यानी ( भोहेण ) ओधे करीने एटले सामान्य रीते (ठिई उ ) स्थिति | II ( वसिमा होई) वर्णन करी छे. ( एत्तो) हवे पछी ( चउसु वि मईसु) चारे गतिने विषे ( लेसाख ठिई तु) लेश्यानी
स्थितिने ( वोच्छामि ) हुं कहीश, ४०.
दसवाससहस्साई, काऊए ठिई जहनिआ होई। तिण्णुदही पलिश्रोवम-असंखभागं च उक्कोसा ॥४॥
अर्थ--(दसवाससहस्साई ) दश हजार वर्ष ( काऊए ठिई) कापोतलेश्यानी स्थिति ( जहनिया होई ) जघन्य छे, तथा (तिण्णुदही ) त्रण सागरोपम अने ( पलिमोवमअसंखभागं च ) पन्योपमनो असंख्यातमो भाग एटली ( उक्कोसा) उत्कृष्ट स्थिति छे. तेमा रत्नप्रभाना उपरना पाथडामा रहेला नारकीयोनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी के तेथी त्यां जघन्य स्थिति भने वालुकाप्रमाना पहेला पाथडामा रहेला नारकीओनी त्रण सागरोपम अने पन्योपमनो असंख्यातमो भाग : एटली उत्कृष्ट स्थिति छे तेथी त्या कापोतलेश्यानी उत्कृष्ट स्थिति होय एम सर्वत्र जाणवू. ४१. तिण्णुदही पलिअमसंखभागो उ जहानीलठिई। दस उदहीपलिओवम-असंखभागं च उकोसा॥४शा ___ अर्थ-(तिष्णुदही ) त्रण सागरोपम अने ( पलिश्रमसंखभागो उ ) पन्योपमनो असंख्यातमो भाग एटली (जहानीलटिई) नील लेश्यानी जघन्य स्थिति छ, ते वालुकाप्रभामा समजवी. अने (दस उदही) दश सागरोपमने (पलिमो