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कारण न थयुं, तो पतुनो विनइंशा साढे चारगो जोए । सावी शंकाने दूर करवा कहे छ
रूत्रस्से चक् गहणं वयंति, चखुस्स रूवं गहणं वयंति । रागस "हेडं समगुलमोहु, दोसस्स "हेडं अमणुगमोहु ।। २३ ॥ अर्थ-( चपखं ) चक्षुने (रूवस्स ) रूपनुं ( गहणं ) ग्रहण करनार (वयंति ) कहे छे एटले रूपने ग्रहण करनार | चक्षु के अने (रूवं) रूपने ( चक्खुस्स ) चचुर्नु (गहयं ) ग्राय ( वयंति ) कहे के एटले चक्षुवडे रूप ग्रहण कराय छे
एम कहे छे. आम कहेबाथी रूप अने चक्षु एनसे परस्पर ग्राम पण छ भने ग्राहक पण छे, एम सिद्ध थयु. तेथी करीने 21 जेम रूप रागद्वेष* कारण ले तेम चनु पण रागद्वेषन कारण छे, तेज कारमा माटे कहे छ के-(रागस्स)
कारणरूप चचुने ( समणुमं ) मनोज्ञ एवा रूपनी साथे वर्तनारं होवाथी समनोज्ञ (माहु) कए थे, अने (दोसस्स) द्वेषना ( हेउं ) हेतुरूप चचुने (अमणुमं ) मनोज्ञ एवा रूपनी साथे वर्तनारूं नहीं होगाथी अमनोन (माहु) क छे. पा कारणथी चतुनो निग्रह करवो ते योग्य छे. २३. भा प्रमाणे रागदेषना उद्धारनो उपाय कहीने हवे तेनो उद्धार न करवामा दोष बताचे छ
रूवेसु जो गिधिषे तिव्वं, अकालिंअं पा से विणासं । राँगाउरे "से जहें वा पैयंगे, आलोअलोले सर्मुवेइ मैचुं ॥ २४ ॥
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