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________________ अर्थ-(विभूसाणुवाई ) विभूषानुपाती एटले शरीरने साफ राखी शोभा करनार (नो हबई ) जे न होय (से) ते ( निग्गंथे ) निग्रंथ कहेवाय छे. (तं कई ) ते एम केम ? ( इति चे ) एम जो शिष्य शंका करे तो (आयरिाह ) प्राचार्य महाराज कहे छ के-(विभूसावत्तिए ) विभूषा करवाना स्वभाववाळो ( खलु ) निश्चे ( विभूसियसरीरे) स्नाना दिक बडे विभूति की हे शरीर से पनो साधु ( इस्विजणस्स ) स्त्रीजनने ( अहिलसणि जे ) अभिलाष करवा लायक * एटले प्रार्थना करवा लायक ( हवइ ) थाय छे. ( तो णं ) तेथी करीने ( इत्थिजणेणं ) स्वीजने ( अभिलसिञ्जमाणस्स) || अभिलाष कराता (भयारिस्स ) ब्रह्मचारी एवा ( तस्स ) तेना (भचेरे ) ब्रह्मचर्यने विपे ( संका वा ) शंका थाय, अथवा (खा वा)कांचा थाय, इत्यादि (जाव) यावत ( धम्माभो भसिजा ) धर्मथी भ्रष्ट थाय. (म्हाते कारण | माटे ( खलु ) निचे (निग्गंधे ) निग्रंथ (विभूमाणुवाई ) शरीरनी विभूषा करनार (नो मिश्रा) न थाय. मानवमुं | समाधिस्थान कझुं. ६-१२. ___ हवे दशभु समाधिस्थान कहे छे. नो सहरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ से निग्गंथे, तं कहमिति चे ? आयरिआह-निग्गंधरस खल्लु सदरूवरसगंधफासाणुवाइस्ल बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा वितिगिच्छा वा समु. प्पजिजा, भेअं वा लभेजा, उम्मादं वा पाउणिज्जा, दीहकालिअं वा रोगायक हविज्जा, केवलि
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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