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करेला धर्मानुष्ठान प्रत्ये सीदाता जीवोने पाछा धर्ममां स्थिर करवा ते ३) ( बच्छल्लपभावणे ) चात्सल्य - धार्मिक जननी भक्ति करवी ते ७ तथा प्रभावना तीर्थनी उन्नतिना कार्यमां प्रवर्तते ८ ( अट्ट ) या आठ दर्शनना आचार . ३१. या प्रमाणे ज्ञान अने दर्शनरूप मुक्ति मार्ग को हमे चारित्ररूप मुक्तिनो मार्ग कहे छे.-सोमाइअ त्थ पढमं, छेडावणं भवे बीअं । परिहारविसुद्धी, सुहुमं तह संपेरायं च ॥ ३२ ॥ कसाय महक्खाएं, छेउमत्थस्स जिर्णेस्स वा । ऐअ चयरितकरं, चारितं होई आहि ॥ ३३ ॥
अर्थ - ( पढमं ) पहेलुं (सामाइय त्थ ) सामायिक नामनुं चारित्र थे, (बीच्यं) बीजुं (छेशोवट्टात्रणं ) छेदोपस्थापनीय ( भवे ) होय छे, ( परिहारविसुद्धी ) श्रीजुं परिहारविशुद्धिक, ( तह ) तथा चोथुं ( सुदुमं संपरायं च ) सूक्ष्मपराय चारित्र दश गुणठा होय छे. अने (अकसायं ) कषाय रहित अर्थात् चय करेला के उपशमावेला कषायनी अवस्थामां (हवा) यथाख्यात नामनुं चारित्र प्राप्त थाय छे, ते ( उमत्थस्स ) स्थने उपशांतमोह ने क्षीणमोह ए वे गुणस्थानमां वर्तता होय छे अने ( जिणस्स वा ) जिनने - केवळीने योगी केवळी ते योगीकेवळी ए वे गुणस्थाने वर्ततां होय. (ए) आ पांच प्रकारनुं ( चयरितकरं ) चय एटले कर्मना समूहनुं रिक्ककर एटले नाश करनार एवा सार्थक नामवाळु (चारितं ) चारित्र ( आहि होइ ) तीर्थकरोए कहेतुं छे.
वहीं सम एटले रागद्वेष रहित चिचना परिणाम तेनें विषे आय एटले जनुं रहेतुं ते समाय, अने समाय ए ज सामा
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