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________________ अर्थ-( इत्थीणं) स्त्रीमोना ( इंदिभाई ) नेत्रादिक इंद्रियोने. केवा इंद्रियोने ? (मणोहराई ) मनोहर एटले जोवा || | मात्रथी ज मनने आकर्षण करनारा तथा ( मणोरमाई ) मनोरम एटले दर्शन कर्या पछी चिंतव्या थका मनने आनंद प्राप- | नारा एवा इंद्रियोने (आलोएसा) काइक जोइने तथा (निज्झाएत्ता) अत्यंत जोइने अथवा निध्याता एटले जोया पछी "अहो । ते स्वीना नेत्रनी सुंदरता भने नासिकानी सरळता केवी के ? इत्यादिक विचार करनार जे होय (से) ते ॥ (निग्गंधे ) साधु ( णो भवति ) न होय (तं कई ) ते केवी रीते ? ( इति चे) एम जो शिष्य शंका करे तो (आयरि आह) आचार्य कहे छे--( खलु ) निशे ( इत्थीणं) स्त्रीभोनां (इंदिभाई मणोहराई मणोरमाई ) जोवाथी मननुं आकपण करनार अने जोया पछी मनने आनंद प्रापनार इंद्रियोने (आलोएमाणस्स ) कांइक जोता एवा अने (निज्झाएमाशास्स) प्रत्यंत जोता एवा अथवा ध्यान करता एवा (निग्गंथस्स) साधुने (भयारिस्स ) ब्रह्मचारी छता पण (भचेरे संका वा) ब्रह्मचर्यने विषे शंकादिक दोष उत्पन्न थाय इत्यादिक पूर्वनी जैम जाणवू. छेवट (तम्हा खलु ) ते कारण माटे निचे (निग्गंथे ) साधु (इत्थीणं) स्त्रीओना ( इंदिआई जाव ) मनोहर भने मनोरम एवां इंद्रियोने यावत् (नो निउझाएजा ) न जुए-न ध्यान करे. मा चोथु समाधिस्थान थयु. ४-७. हचे पाचप्नु समाधिस्थान कहे छे.-. णो निग्गंथे इत्थीणं कुटुंतरंसि वा, दूसंतरंसि वा, भिर्तितरंसि वा, कुइअसई वा, रुइअसई
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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