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________________ वा, गीअसई वा, हसिअसई वा, थणिअसई वा, कंदिअसई वा, विलविअसहं वा सुणित्ता हवइ * से निम्गथे । तं कहमिति चे ? आयरिआह-निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कुटुंतरंसि वा जाव विलवि. । असई वा सुणमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा जाव केवलिपहाताओ वा धम्माओ | भैसिज्जा, तम्हा खलु निग्गंथे नो इत्थीणं कुर्वातरंसि वा जाव सुणमाणो विहरेजा ॥ ५-८॥ ___ अर्थ-(निग्गंथे ) साधु ( कुइंत्तरंसि वा ) पथ्थर अने माटी विगेरेथी बनावेला कुड्य-भीतने आंतरे-ओथे रहीने, अथवा (संतरसि वा) दूष्य एटले यसना पडदाने आंतरे रहीने अथवा ( भित्तितरसि वा) पाकी इंट अने चूना विगेरेथी बनावेली भीतने आंतरे रहीने (इशी मीशोना ( जुनअसई वा) कूजित शब्द एटले संभोग समये कोयल विगेरे पक्षीनी | जेवा थता शब्दने अथवा (रुअसई वा) रतिकलहादिकमा थता रुदित शब्दने अथवा (गीअसई वा) पंचम विगरे मीतना | शब्दने अथवा ( हसिमसई वा ) हसवाना शब्दने अथवा ( थाणअसदं वा ) रति समयमा थयेला मेघनी गर्जना जेवा ॥ शन्दने अथवा ( कंदिअसई वा) पतिना विरइने लीधे करेला श्रानंदना शब्दने अथवा ( चिलविसई वा) भर्ताना गुणो संभारी संभारीने करेला बिलापना शब्दने (सुणित्ता ) सांभळनार जे होघ (से ) ते (निम्गंथे ) साधु (नो || इवइ ) न होय-न कहेवाय, (तं कह ) ते केवी रीते ? ( इति चे ) एम जो शिष्य शंका करे तो (आयरिाह ) भाचार्य कहे छे-(खलु ) निथे (कुईतरंसि वा) प्रथम कहेला कुख्य विगैरेने तिरे रहाने (इस्थीणं ) स्त्रीओना पूर्वे कहेला कृजित |
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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