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________________ "" @_*•**••* रीने दमी शकाय एवो कोइ वृषभ (जुर्ग ) झुंसरीने ( भंजई ) भांगी नांखे के, ( से विश्र ) वळी ते पण उद्धत वृषभ ( सुस्सुइसा ) फुंकाडा मारी ( उजहित्ता ) गाडीने तथा स्वामीनें उन्मार्गे नांखी ( पलायह ) नाशी जाय थे. ७. चप्रमाणे दृष्टांतने विचारी हवे दाष्टांतिकने विचारे छे. वलंका आरिसा जोजा, दुस्सीसा वि हुँ तारिसा । जोइआ धम्मजाणम्मि, भजंति धिइँदुब्बला ||८|| - अर्थ - ( खलुंका) गळीया वृषभ ( जोखा) वाहनमां जोड्या सता (जारिसा) जेवा प्रकारना होय छे, (दुस्सीसा वि) शिष्यो (तारिसा हु ) तेवा ज होय छे. केमके (धिदुब्बला) दुर्बळ धृतियाळा तेश्रो (धम्मजाखम्मि) धर्मरूपी यानमा ( जोइया) जोडया सता एटले धर्मानुष्ठानमा स्थिर कर्या सता पण ( भांति ) संयममार्गथी भ्रष्ट थाय छे अने गुरुने लेशकारक थाय छे. ८. धृतिना दुर्बळपणाने ज प्रगट करे .. डीगारविए ऐगे, ऍगेऽथ रेसगारवे । सायागारविए पैगे, एंगे सुचिरकोहणे ॥ ९ ॥ अर्थ – (अत्थ ) आ कुशिष्यना अधिकारमा ( एगे ) मारो को अविनीत शिष्य ( इडीगारचिए ) ऋद्धिगौरववालो के एटले " धनिक श्रावको मारे आधीन के अने मारा वस्त्र पात्रादिक उपगरयो उत्तम के " इत्यादिक माननारो के तथा ( एगे ) कोह शिष्य (रसगारवे ) मधुरादिक रसने विषे गौरववाळो ये तेथी ते ग्लानादिकने आहार लावी आपवाम के
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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