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________________ अर्थ-(एग) एक वृषभने पोताना दांतवडे (पुच्छम्मि) पूछडामा ( डसइ) करडे छे भने ( एर्ग) एकने न (अभिक्खणं ) वारंवार (विधइ) वींधे छे-मारे छे, तेम करवाथी (एगो) एक वृषभ ( समिलं) शमिलने-सुसरीनी खीलीने (भंजइ ) भांग के अने ( एगो) एफ ( उप्पहपढिनो) उन्मार्गे गयेलो थाय छे-उन्मार्गे जाय छे. ४. एगो पैडइ पासेणं, निवेसइ निवेजइ । उकुदइ उप्किंडइ, सढे बालगवी वंए ॥ ५॥ अर्थ (एगो ) एक गळीयो वृषभ ( पासेणं ) डावा जमणा पडखे ( पडइ ) पडे छे-आळोटे छे, (निवेसइ ) कोइ। बेसी जाय छे, (निवअइ) कोइ लांबो थइने सुइ जाय , ( उक्कुद्दइ ) कोइ कूदे थे, ( उप्फिडइ) कोइ फाळ मारे छ || एटले ठेके छे, ( सढे) कोइ शठपणुं-धूर्तपणुं करे छ, ( बालगवी वए ) कोइ युवान गाय तरफ दोडे छे. ५. ___माई मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छइ पडिपहं । मयलक्खेण चिट्ठाइ, वेगेण य पहावइ॥६॥ ___ अर्थ- (माई ) मायावी एवो बीजो वृषभ तो (मुद्धेण ) मस्तकवडे (पडइ) पडे के एटले पोताने अशक्त देखाडतो माथाभर पडे छे, (कुद्धे ) कोइ क्रोध पाम्यो सतो ( पडिपहं ) पाछे मार्गे-पाचे पगले (गच्छह ) जाय छे, (मयलक्खण) कोइ मरेलानी जेम (चिट्ठाइ ) पब्यो रहे छ, ( वेगेण य ) तथा कोइ वेगथी ( पहावइ ) दोडे थे. ६. छिण्णाले छिरोणई सैलिं, दुईते भंजई जुगं । से वि अ सुस्सुआइत्ता, उज्जहिता पलायइ ॥७॥ अर्थ-(छिमाले ) दुष्ट जासिनो कोइ पृषम ( सविं ) रज्जुने (छिकई ) तोडी नांखे छे, तथा ( दुईते ) दुःखे क
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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