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________________ वहणे वहमाणस्स, कंतारं अइवत्तइ । जोए अ वहमाणस्स, संसारे अइवत्तह ॥ २ ॥ अर्थ--( वहणे ) गाडी प्रादिक वाहनमा ( वहमाणस्स ) जोडेला विनीत वृषभ अश्वादिकने हांकता एवा पुरुषर्नु (केतारं ) अरण्य ( अहवत्तइ ) सुखेथी पोतानी मेळे ज उल्लंघन थाय छ, ते जरीते ( जोए अ) योगने विषे एटले संयमव्यापारने विषे (वहमाणस्स ) जोडेला सुशिष्योने प्रवर्तावनार प्राचार्यादिकनो ( संसारे ) संसार (अइवत्तइ ) पोतानी मेळे ज सुखेथी उल्लंघन थाय छे. कारण के शिष्योने विनयवाला जोवाथी पोताने विशेष समाधि थाय छे. २. आ प्रमाणे पोतानी समाधिने माटे विनीत शिष्यनुं स्वरूप विचारी हवे अविनीतनुं स्वरूप विचारे के.खलंके जो उ जोपइ, विहम्माणो किलिस्सइ । असमाहिं च वेदेति, तोतओ से ये भजइ ॥३॥ ___ अर्थ-(उ) तु पुनः (जो ) जे पुरुष ( खलुंके ) अविनीत एटले गळीया वृषभादिकने ( जोएइ) रथमा जोड छ, 5 ते पुरुष ( विहम्माणो ) अविनीत वृषभादिकने वींघतो एटले मारतो मारतो (किलिस्सइ) क्लेश पामे छे-थाकी जाय छे, भने तेथी करीने ज (असमाहिं च) असमाधिने (वेदेति) वेदे खे-पामे छे, (य) तथा (से) ते हकिनार पुरुषनो (तोत्तओ) * तोत्रक एटले होकवानो परोणो, चाबक विगेरे ( मजद) भोगी जाय छे. ३. तेथी भति क्रोध पामीने ते हांकनार पुरुष शु करे छे । ते कहे छे.एग डैसइ पुच्छम्मि, एंगं विधइऽभिक्खणं । एगो भंजइ समिलं, एंगो उप्पहपट्ठिओ ॥४॥
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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