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संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुर्त्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमते विहरिजा ॥ २ ॥
अर्थ — जंबुस्वामी गुरु महाराज सुधर्मास्वामीने पूछे के के - हे स्वामी ! ( थेरेहिं भगवंतेहिं ) स्थविर भगवंतोए ( कपरे खलु ते ) कया निश्चे ते ( दस ) दश ( बंभचेरसमाहिद्वाया ) ब्रह्मचर्यनी समाधिनां स्थानो ( पत्ता ) कहेलां छे ? के (जे ) जे स्थानोने (भिक्खू ) साधु ( सोचा ) सूत्रथी सांभळीने तथा ( निसम्म ) अर्थथी अवधारीने ( संजमबहुले ) घणा संयमवाळ ( संवरबहुल ) या संवश्वाळी ( समाबिहुले ) घणी समाधित्राको ( गुत्ते ) प्रण गुतिथी गुस ( गुर्सिदिए ) इंद्रियांनी गुप्तिवाळो तथा ( गुसबंभयारी ) नव गुप्ति युक्त ब्रह्मचर्यं प्राचरण करवाना स्वभाववाळो थाने (सया ) सदा ( अप्पमत्ते ) प्रमाद रहित (विहरिजा) विचरे छे २.
श्री सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने उत्तर आवे छे के
इमे खलु ते रे भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिट्टाणा पहाता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुतिदिए गुत्तभयारी सपा अप्पमत्ते विहरिजा ॥ ३ ॥ अर्थ-स्थावर भगवंतोष मा निश्चे ते दश ब्रह्मचर्यनी समाधिनां स्थानों कलां छे, के जे स्थानोने सांभळीने साधु सदा श्रप्रमतपणे विचरे थे. ( मध्यना शब्दोनो अर्थ उपर प्रमाणे समजी लेवो. ) ३.
इवे से ब्रह्मचर्यनी समाधिनां दश स्थानो बतावे बे.
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