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भने तेथी थता दोषो बताया छे. छेवट आ सर्व प्रमादनां स्थानोथी रहित थयेलो जीव मोशने पामे छे. एम फही अध्ययननी समाप्ति करी छे. ___अध्ययन ३३ पार्नु ३१०-प्रमाद सेवबाथी कर्मबंध थाय छे, तेथी आ कर्मप्रकृति नामना अध्ययनमा कर्मर्नु स्वरूप बताव्यु छे. तेमा प्रथम ज्ञानावरणीयादिक पाठ कर्म अने ते दरेकनी उत्तरप्रकृति प्रभेद सहित कही छे, पछी कर्मना प्रदेशाग्र, क्षेत्र, काळ अने भाव विस्ताग्थी वर्णव्या छे.
अध्ययन ३४ पार्नु ३१६ –कर्मनी स्थिति लेश्याने प्राधीन होवाथी आ अध्ययनमा लेश्या स्वरूप का छे. तेमां प्रथम लेश्यानां नाम कही पछी अनुक्रमे तेना वर्ग, रस, गंध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति भने प्रायुष्य बताव्यां छे. तेमां चारे गतिना मोवान श्राश्री लेश्यानी स्थिति विस्तारथा कही छ..
अध्ययन ३५ पार्नु ३२८-शुभ लेश्या गुणवानं साधुने अहोई शके ले नेथी श्रा अनगारमार्गगति नामना अध्ययनमा साधुना गुणो बताब्या छे. तेमां प्रथम पंच महावतो पाळवानं काय छे. पनी कामगगने जागृत करनार मनोहर उपाश्रयमा रहेवानो निषेध कर्यो छे, अने स्मशान तथा शून्यगृह वा स्थानमा रहेबानं कां छे. घर कराववा विगेरे कार्यमां त्रस अने स्थावर जीवोनी हिंसा होबाथी बिलकुल प्रवृत्ति करवी नहीं. जीवहिंसाना कारणथी ज पचन-पाचन क्रियामां, अग्नि सळगाववामां आने क्रय-विक्रय करवामां नहीं प्रदर्ती शुद्ध भिकाचर्याथी ज निर्वाह करवो, गास्वनी वांछानो त्याग करी शुक्लध्यानमः ज रहे, विगेरे उपदेश चाप्यो छे.
अध्ययन ३६ पार्नु ३३३-साधुगुण सेवबामा जीवाजीनु स्वरूप जाणवु श्रावश्यक दे, तेथी या जीवाजीवविभक्ति नामना