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________________ तत्पर थाय, ज्ञान नहीं छलां जेनी तेनी साथे वादविवाद करवामां प्रवर्ते, कारण विना पण घी दूध विगेरे विकृति वारंवार खाचा करे, व्रत पञ्चख्खाण कर नहीं, परपाखंडीनो साथे प्रसंग वघारे, रागी श्रावकोना घरनी भिक्षा ग्रहण करे, आवा कुशीळीया अने पासस्थादिकनी जेवा आचरणा करनार साधुओ केवळ वेषविहंधक ज छे. तेवाने कदापि साधु कही शकाय नहीं. विगेरे हकीकत विस्तारथी आपी द्वे. अध्ययन १८ पान १८-पापस्थानोनो त्याग पण भोगनो त्याग करवाथी ज थाय छे. तेथी पा अध्ययनमा संवत राजानी कथा | भापीछे. तेमां ते राजा मोटा सैन्यना परिवार सहित शिकार करवा गयो छे. त्यां एक मुनिने ध्यानमा रहेला जोइ तेने पोताना पाप संबंधी भय उत्पन्न थयो. तेथी संग मुनिने बंदना करी. ध्यानमा रहला मुनि काइ पया बोल्या नहीं, त्यारे तो ते वधारे भयभीत थइ बारवार खसावा लाग्यो, छेवट मुनिनु ध्वान पूर्णः धयु, त्यारे मुनेए तेने का के-" हे राजा ! माराथी सने जरा पण्य भय नथी, परंतु आ निरपगधी मृगादिक जीवोने तं अभयदान प्रापनार था." एम कही मुनिए तेने संसारनी अनित्यता, जीवितनी चपळता, धनमुनादिकनी अशरगाता, विष जेबा भोगनी परिणामे विरसता विगैरे संबंधी घयो असरकारक उपदेश प्राप्यो. तेथी वैगग्य पामी राजाए सर्व भोगनो त्याग करी दीक्षा लीधी. अनुक्रमे गीतार्थ थ गलनी प्राज्ञाथी एकाकीपणे विचरखा लाग्या, एकदा ते गर्षिने कोइ क्षत्रिय मुनिनो समागम थयो, ते चखते से क्षत्रिय मुनिए ते राजर्षिना वैराग्यनी परीक्षा की. पछी क्रियावादी, प्रक्रियावादी, विनयवादी अने अज्ञानवादी ए चार एकतिवादीना मिथ्यावाद बतावी तेनापर सारु विवेचन कर्य, पछी दे ज क्षत्रिय मुनिए ते राजर्पिने चारित्रमा स्थिर करवा माटे पोलानो || ज प्राचार बताव्यो छे, तेमां संजय राजर्षिय बच्चे केटालाक प्रश्नो कर्या छ भने क्षत्रिय मुनिए तेना उत्तर प्राप्या छे, तेना प्रसंगोपात भरतचक्रवती विगेरे महापुरुषोनी कथाओ कही संजय राजर्षिने चारित्रमा दृढ कया है.
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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