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अध्ययन १६ पार्नु ६४–सांसारिक भोगऋद्धिनो त्याग करती वखते शगैरनी शुश्रूषा पण वर्जवानी छे, ते घाबत मृगापुत्रना | पृष्टांतथी बतावी श्रापेल छे. तेमा ते मृगापुन दोगुंदुक देवनी जेम भोग भोगवतो पोताना महेलमा रह्यो हतो, तेवामा एकदा मार्गमा जता मुनिने जोइ जातिस्मरण थवाथी वैराग्य पामी मातापिता पासे आवी चारित्र लेवानी आज्ञा मागी, ते वखते तेथे नारक तियंचनां दुःखो, कामभोगनी तुच्छता अने परिणामे रिसता, शुश्रुषा कर्या छतां शरीरनी अपवित्रता अनित्यता भने असारता, जन्म जरादिकनां दुःखो विगेरे विषयो दृष्टांत सहित समजाव्या छ. तेना जवाबमां तेना मातापिताप नेनापरना मोहने लीधे दीक्षानो निषेध करवा माटे चारिबन दुष्कापणुं अगावतां पांचे महाव्रतो अने छठा रात्रिभोजन प्रतनी दुष्करता आने वावीश परीषदोनी दुःसहता विगेरे बताबेल छ, तथा चारित्रनुं पालन केबुं दुष्कर के ? ने दृष्टांत सहित सविस्तर समजाव्यु छे. तो पण कामभोगमां लुब्ध नहीं थयेला अने चारिखना कष्टथी भय नहीं पामेला मृगापुत्रे चार गतिवाळा संसारमा अनंतीवार नारकादिक दुःखोनो पोतानो अनुभव कही देखाड्यो छे के जे बांचवाथी बांचनारने पण वैगग्य उत्पन्न थाय तेम हे. पल्ली तेणे दीप्ता स्लीधा बाद भिक्षाचर्यान स्वरूप, चारित्रना प्राचार अने छेक्ट तेमन मोजगमन विगैरे बताव्यु छे. | अध्ययन २. पार्नु ११३--'संसारमा मारो रक्षाक कोइ नथी, हु एकलोज छं' एवा अनाथपपानी भावना विना शरीग्नी शुश्रपानो त्याग थइ शकतो नधी, तेथी मा महानिथीय नामना अध्ययनमा अनाथता सिद्ध की छे. तेमां श्रेणिक गजा एकदा उद्यानमा गया छे, त्यां तेयो युवान वयवाळा, कोमळ शरीवाळा अने मनोहर सौंदर्यवाळा एक मुनिने 'जोइ दीक्षा लेवार्नु कारण पूछ'छे, तेना अवाबमा ते मुनिर कधु के-"मारो कोइ नाथ न होवाधी नाथ मेळववा माद में दीक्षा लीधी छे.” ते सांभळी आश्चर्य पामेला राजाए का।