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ससिणा नणियं किम करेमि पमिऽम्हि पारवस्सम्मि । ससिणेहचेयसा तो सुरेण उप्पामिल सहसा ॥१॥ नवणीयस्स व पिंको जलणुत्तविट जहेह कत्यीरो । गखि गलि निवमा करसंपुम तदा देहो ॥२२॥ जह बाद जप्पक मे अगाहवाहा सुस्सहा बहहा। विसरसरं श्रारसई सुयरं तह तहा स हहा ॥ १३ ॥ साह बंधव मुंचसु मामित्तो निहुराज कचा । जह य निवित्ती हवई कि किसाइ संपर्य जाय ॥२४॥ ताहे अहे विमुक्को संजायकिवेण तेण देवेण । जण्जेि य सहोयर पुवमेव बढुयाहि जुत्तीहिं ॥ १५ ॥ तुममंगमप्पयो किं पोसेसि असासयं अन्तरकेहिं । मंसेहि मझापाणप्पमुहेहि असंखपावहिं ॥ २६ ॥ देहस्स सारमिणमेव वकालीपजीवियोण । जे अजिजाइ धम्मो कम्मोरगजंगुलीमंतो ॥ २७ ॥ श्रमियपरिगहकरणं परधाहरणं परस्थिगमणं च । न हु का जुत्तमिमं जळ नवे नवपरिश्रमणं ॥ २०॥ तो नारएण वुत्तं सत्तं अवलम्बिकाण गाढयरं । तं मह देहं गेहं सवाणत्याण पावाणं ॥ २५॥ जिंदसु निंदसु कुमुसु गंतूणं तत्य मुरिकर्य कुण्सु । जोगाई होमि इहं सुहि उइवेयणुम्मुको ॥ ३० ॥ तियसेणुलवियं तो निक्रीवेणं किमंग अंगएं । श्रमुणा मुहीकएणं निधणजएदमणेषुब ।। ३१॥ जश् पुर्व सलिला धिकाइ पाखिया त सुहानहु पाणीयप्पसरे सक्किका वधिलं सा य ॥ ३ ॥ संप पुण किं किडाइ कमाण कम्माण अपमिकताएं । पुद्धिं बुञ्चिन्नाणं वेश्त्ता अस्थि नणु मोरको ॥ ३३ ॥ न पुणो अवेयश्ता तवसा वा कोसश्च मुको यएवं नपिकप सुरो संपत्तो अप्पणो गणं ॥ ३४ ॥
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