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________________ 1: उपदा- १३ए , जवजय ससहोयरया जहिलाए॥ ॥ दिनाएसो पिठणा जन्ह चखि ससिन्नपरिकखिन । उमदंगरयणावणामियासे- शरिका. मरिनवग्गो।ए॥ महया विदुरण श्रच्चंतो चेश्याई पश्नयर । गामे गामे साहम्मियाण बहुमाणमप्पती ॥ १०॥ पत्तो|| अवयगिरिमरिगिरिश्रसपी स जन्वरकुमरो। चचजोयणविछिन्नं तमजोयएसमुन्नयरं ॥ ११॥ सह सोयरेहिं चमि तम्मि गिरिम्मेस अप्पपरिवारो । तत्थगजोयणायाममजोयणसुविछिन्नं ॥ १५ ॥ गाजयतिगमुच्चयरं चवदार चेश्य | महारम्म । सिरिजरहरायकारियमएिवारियसुजससंजारं ॥ १३ ॥ मणिरयणप्लवमालचनबीसजिएसबिंबसोहिनं । निवजरहलाउसयधूनसंगयं सुकयपुंजमयं ॥ १४॥ दचूण पहिले सो काऊण पयाहिणं पविणे य । अञ्चित्ता जिणविवे कयत्यमण्यं खु मन्ने ॥ १५॥ तो पुचिन पयत्तो मंतिमिम जिएहरं कयं केण । सिरिजरवश्यरो तेहिं साहि तप्पुरो सयसो ॥१६॥ तो कहा जम्दुकुमरो श्रन्नं गिरिमेरिसं गवेसेह । कारिजाइ जत्थ मए वि एरिसो गरुपासार्ड ॥१७॥ तो तेण गवसाविय सबत्थ विलविरमग्गले पहुणो । एयारिसो न दु गिरि दिछो दिखी कत्थ विय॥१०॥था वि जीव जरहो नूएं जरहस्स मखमम्मि । जस्सेरिसचेईहरमिसेण किती परिष्फुरई ॥१॥ ज एवं ता एयस्स चेव | रस्कणविही वियवो । जेएागामिणिकाले बुहा पहुणो विस्सन्ति ॥२०॥ अहिनवकारवषार्ड पुरायणस्सेव पावणं मुटु । तो गिरिहत्ता ते दमरयणमुझसुपथ ॥२१॥ खणि लग्गा श्रजवयस्स पासेसु नूरिजूनागं । तमहो सहस्सजो- १३२।। यणमणि निंदितु निस्संकं ॥३॥ पत्तं नागघरेसुं जित्ताई ताई तप्पहारेण । तत्तो जीया नागा जक्षणसिहं सरणमणुका पत्ता ॥ २३ ॥ तवश्यरो श्वसेसो तप्पुर सादि त तेहिं । संनंतो सो सहसा समुलिहिं पजेश् ॥ २४ ॥ तत्तो स 278 Xc%AKKAR)
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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