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________________ विष्फुरत्थामा ॥०॥ श्रह अग्नया धणको श्रकंतोश्यामएहिं बहुएहि । वागर निययतणुए पाए पयकमखजुयसम्मि ए॥ किंचिव जमि अहयं तुप्राणं हियपर्य जया कुण्ड । ते नववंति ताया जं कहसि तयं वयं कुणिमो ॥१॥ अह श्राइस स ताणं तणुयाणं सविणयाण निययाणं । तुम्हेहिं मज्क मरणे संजाए दिबजोएण ॥११॥ निचलपिम्मपरेदि शायधमहो मिहो सगेहम्मि । जनाए मुजापाण व न हु कर वयणमिह सवणे ॥१॥ जय कवि जिन्नताबो इविक तुम्हाण नेहविगमेण । न दु तहवि हासजा कायवो नणु मिहो कलहो ॥ १३ ॥ चनसुवि कोणेसु मए एयस्स गिहस्स गुणनिहिनिही । वति य निहियार्ड पिहियार्ड पवरकखसेहिं ॥ १४ ॥ पुवाश्कमेणेए गहियवा अनगिरेहि किमवि मुहे । संघेयबा एसा न हु मझाया भए विदियः ।। १५॥ मग तशिरोहिं भयो तिहणं तर्ज गर्न सिकी। समयकिरियमिमस्सेए का सुचिर विया सुहिया ॥ १६ ॥ पुत्तासंतईए वमविमविसमा विवहिन बग्गा। नियनियमिलाण कए कविं पकुवन्ति महिलार्ड ॥ १७ ॥ अन्नोन्नमवि सपिम्मा सहोयरा निन्ननावमावना । नारीण कन्न-4 जावा पाया पीई पणासंति ॥ १०॥ अह पढमो सिन्सुि धाकड अप्पणो निहिं जाव । ता तम्मने वित्रिय हयसर जाइशरं ॥ १५॥ बीवि नियनिहाणे निरिकय अह खित्तमट्टियं कसिएं । संजाई कसिएमुद्दो नहसमयसमयमेनन W॥१०॥ तदती नियनिहियो मख्ने पोराणलिहियवाहिया । लबहर दाममरिसमसरिसमीसानवकटिन ॥२१॥ संजा य चलत्यो निहिं निहाशित्तु इरिसपमिहत्यो । मणिकंचणरयणुक्रववन्नं पयमीकवसुपुन्नं ॥ १५॥ अह तिन्निवि। सोयरिया नरिया रोसेण एवमाहिंसु । तुमा सचे तणुया पिठणा पुस श्रम्ह कलसंसु ॥ ३३ ॥ केसाई निवित्तं बड्य m265 सप-२५
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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