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________________ * उपश- ॥१२॥ णिय पामिळ कुमरो । रुद्दप्रवसायवसा मरिनु पत्तो महानरयं ॥ १४ ॥ तत्तो मन्सु जमामिण बढुकालमावईहि ! सप्ततिका. जिस । फरकीकर्ष कुवेरो कम्मपरीक्षामलूवायो। माश्यवं जयरे महापुरे तं घणकृसिकिस्स । पलमाजिहाणपुत्तं | संपन्न रूवरहाए ।। १५६॥ युग्मम् ॥ जाया सिसुत्ता वि दु माया मायागो मणोमने । तस्स बहुतित्तिनामेण नंदिणी! *रागकेसरिणो ॥ १७ ॥ तबस सिसुबग्गं वंचर संच सुखाश्यं विविहं । खाय पियऽ सयं सो नशेसि देश संपिक 1॥ १७ ॥ वोक्ष मदुर बयाणे नयणे नीरेण जर मायाए । ज वड्डयरो जाने तो वंचइ मायरं पियरं ॥ १२५ ॥ जोल व जणिजत्तिकयाइ विनमइ जाउएवि निए । उलायमवि पढंतो धुत्तयविकार धुत्ते ॥ १३० ॥ जश् जाइ जणणिसत्थे |4| |जिएहरमेसो अश्वमाछो । तो जिपथुई जणिता दि िवंचित्तु सधेसि ॥ १३१॥ परिकवर मोयगाई करकाए बबुखिया सिरकाए । चोर य घंटकलसाइ हत्थपयलाहवुलोलो ॥ १३ ॥ तामिहंतोचि जिर्स न मन्नई चोरियाश्चत्णि । सप्ताव न जासइ सहोयरस्सावि कस्सेसो॥ १३३ ॥ अन्नजणं सयणं वा न दुमिवर कंपि निन्न दली। अश्वेश्यचित्तेहिं मापियरेहिं सो कश्या ॥ १३४ ॥ नी गुरूण तीरं जणियं तेसिं च तेहिं पुत्त जहा । जयवं श्रम्हाण कुले कम्मयरोवि इन एरिसई ॥ १३५ ॥ जा मायावहुलो बहुखोलालरिङ रिचव सुर्वे । तो तह कुणह पसायं जद्द मुंचइ एस माइत्तं ॥ १३६ ॥ तचो गुरूहि करुषाइ देसपा कवकूमनिवणी विहिया हियासएहिं सएहिं कन्नेहिं तेण सुया ॥ १३७॥ ॥ १२७॥ मायादी जवि जपो न दुशवराई करे कस्साधि। न दु विस्ससणिजो तह (विदु) कस्सवि सप्पोब सो हव॥१३ना मायावियो जथा इह परजम्मे हीराजाश्वसेसु । उप्पड़ांति निहीणा दीणा दारिदिया मुहिया ।। १३ए ।। तो कम्मपरि 254 AKSIkkie---- *
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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