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________________ निकासइ परमवेरिध ॥१०॥ ततो वखितु एसा श्रवचमोहेण वाउखा संती। तस्स य विलगितु पए सए गिहे श्राप कुमारं ॥ १०॥ महया कोणाहूयमेयमवगम्म सम्ममवपीसो । दावश् महंतमासणमिमस्स अवि विडीयस्स ॥ ११०॥ तस्थोवविच्छ सोधिछो न हुनमणमवि कयं पिठणो। नहीकयनयणमुद्दो असंमुद्दो रायजयस्स ॥ १११ ॥ श्रालासि तहावि दु बहुणा नेहेण वन्न तुन सुई । तुद सुंदेरिमगुणरंजिएहिं निवर्श नियय ॥११॥पहिया कन्ना पाणिग्गहत्यमञ्चत्य मुश्यहियएहिं । तासिं पूरेसु मणोहराई नियपाणिदाणेष ॥ ११३ ॥ युग्मम् ॥ तहखहु गहेसु रङ मए सयं किए। |य अजिसेल । परिनुत्तमुधिरजोगा बयमणुजामो य दिरकपहं ॥ ११॥ तो विहियकाजावो स सेखरायण निविझकयपावो। सालयतरश्यजिटमी रायं पर नए वयामिणं ।। ११५॥ इत्तिय महग्गहेणाहमिहाणी घरा जपणी एवं न किंचि कहां रकामहं दिन्नमवरेण ॥ ११६॥न दु गिएिहस्सं श्य निबर्ग य सो वासरो स्वयं जाउ । साऽवि निसा पखयमई जत्य परदिन्नरजसिरी ॥ ११५ ॥ युग्मम् ॥ श्य वुत्तुं परिहपहारदाण श्राणिनु पीढग्गं । सहसा समुनि | सो गातो दारदेसेण ॥ ११० ॥ रन्ना सपरिगरेणं उव(वि)स्किर्ट रस्किळ न मणयम्मि । किमर्णण निग्गुणेणं नंदणपासण धरिएणं ॥ ११ ॥ तह सम्मदंसोएं चत्तो संपत्त य मिळेण । तह सेखरायमोहयनमि नगराउ निस्सरि ॥१२॥ ४ बाहिं पसो य महामवीए वियमा सावयसएहिं । राया मायाममयामुत्तो तत्तो य पवा ॥ ११॥ नियलहुयन्जानो। नीवयस्स दाऊए परमरक्रसिरिं। श्रह सो कुवेरनामो परिप्रमंतो महारत्ने ॥ १२॥ संगामकासनण वग्यपनीवास्त तपएण । चित्तेण पिरिकले सो त स जलपोब पाखि॥११३ ॥ त्रिनिर्विशेषकम् ॥ सहसा पलिई तम्मारणत्यमाह
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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