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________________ उपदेश ॥१२०॥ सुमियं दिनं महीयो ॥ १० ॥ जड् मा सभ्ये मारह नागकुलाई जविस्सई पुत्तो । जम्हा तुम्हाण घरे तस्स य पु | दारगस्स अहो ॥ २७ ॥ नामं गुणाजिरामं दिका नए नागदत्त इय पयमं । इत्तो सो खमगही पाणपरिचायमानो ॥ ३० ॥ तस्सेव भूमियो पत्तो पुत्तत्तमुत्तमगुणडुं । तन्नाम नागदत्तोति कथं पियरेहिं वर्ज ॥ ३१ ॥ समाप्यसंग वस उवएससुद्दारसं तर्ज पिच्चा । नचा जवस्तरूवं विषि (ण) स्सरं खडुवए चैव ॥ ३२ ॥ पद गुरुपासे से तो य दुविद सिरका | संजार्ज गीयत्यो सुत्थावत्यो जाइ गुणई ॥ ३३ ॥ तिरियजवन्जासाठ बहाउलो सो अव संजार्ज । श्रान्न दिषयरुग्गमवेलं जा होइ ॥ धावतं सुनीरसं सरसं । न हु रत्तपित्त उवसंतो धम्मसझिलो ॥ ३५ ॥ रूस न डु करुएहिं कसायवयेहिं मुद्रणुत्तेहिं । तूस न थुषितो वहड़ समजावमावन्नो ॥ ३६ ॥ श्रह तम्मि चैव गले अबेरयकारि करतवस्सी । चत्तारि संति खमगा चालम्मा सियतको पदमो ॥ ३७ ॥ तेमासि य बीच तीच दोमासि मुषेयो । इगमासि चलत्थो एवं चरोषि ते संति ॥ ३८ ॥ परज तेसिं खुड़गमुही महप्या स श्रत्थि श्रासीयो । चउरोवि समुचंघिय खमगे तह कोमाणि ॥ ३९ ॥ श्रगम्म देवयाए तीए सो बंदि महाजागो । अइन चिनिन्जराए गिराइ मडुराइ संधुवि ॥ ४० ॥ इय पासिन्तु पकुविया खमगा चन । रोवि देवयाचरियं । निग्गनुंती वत्थे गढ़िया चल मासिया मुलिया ॥ ४१ ॥ जलिया ऽवयऐहिं रे धिछे कुछ चित्ति पाविहे । इगतिमासाईडुक्करतवकारिणो श्रम्हे ॥ ४२ ॥ कीस न बंदसि मुझे सुरतणं तुह धिरत्यु धीवियले । एवं खु कूरजायामुमिवरयं च पयमेसि ॥ ४३ ॥ तिरितव जो बुदालु चिघ्इ परिभुक्रमाण निश्चं । तेण कद मोरउल्ला 240 सप्ततिका. ॥ १२० ॥
SR No.090458
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size13 MB
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