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सप्ततिन.
तस्सेव बाखगस्स य दवावियं दविणजायमखिलंपि । पंचसयाएं सो नाइत्वं सूखाण पाखे॥११७॥ कुणमायो तारिसजीवधायपमुहाई पावकजाई। पंचत्तं पावित्ता पूरित्ता पायगेणप्पं ॥ ११ ॥ गोयम सत्तमपुढीपयजाणम्मि पत्थमे पत्तो । सावजायरियजिन पर(रि)वरि पावकम्मेण ॥ ११ ॥ तित्तीससागराई तत्थ पगाढाउ घोरवियणाई । विसइंतो मुसहा उचट्टित्ता तऽवि पुणो ॥ १० ॥ संजा अंतरदीवगेसु एगोरुगाण जासु । तत्तोऽवि हु मरिकाएं अवश्नो तिरिवजोणीए ॥११॥ नारयसरिसहाई अणुहविचं वनराई बीस । निहणं पावितु त नप्पन्नो वासुदेवत्ते ॥ ११ ॥ तत्यवि बदृश्रारं घणपावपरिग्गरं करित्तु पुणो । सत्तमपुढविं पत्तो सित्तो घणपावपंकण ॥१३॥ तत्तो समुझरिचा अप्पं दप्पंधलोयणो जा। गयकन्नमणुअजाई माई मसाइ मजापित ॥ १२ ॥ सत्तमपुढवी(ऍ)य गऊ म तर्ज पावकम्मि बहुसो । चविड तऽवि महिसो संपत्तो तिरियजाईसु ॥ १५।। जारुवहणाई सहंत तत्थ पुण गर्ने निहणं । बालविहवाइ माहणसुयाइ तह पंसुखीए य ॥ १२६ ।। कुछीए संजूळ नूठविव गरहिड सदोसेहिं । पन्नगन्जसामण पामणपमुहहिं पुरकेहिं ॥ १७॥ बहुवादिवेयणासयकखियंगो मुचकुच्चाहियो । किमिजालखङ्गामाणो नीहरि गन्जमजा ॥ १० ॥ कडकडमवि बुमिगत निंदिरातो य पामरजणेहिंगरहितो बहहा तामिळांतो य बाखेहिं ।। १२ए।। १ पातकेनात्मानम् -
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