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एपदेश
सप्ततिका.
॥६६॥
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ते कारर्विति ईहराई सुमणोहराई नयरम्मि । नीयावासम्मि रया दयाविरुणा अजियकरणा ॥१०॥ युग्मम् ॥ सिदिखीकयचारित्ता रित्ता तवषियमसञ्चसोएहिं । दूरुफियखोयलयासंका वंका गुणविमुक्का॥ ११॥ निवसंति सुहेणं चेइएसु अञ्चति धूवकुसुमेहिं । देवे सेवंति य सबया वि पंचप्पमायाई ॥१२॥ , सबे सत्ता पाषा जीवा जूया य नेव हतबा । सुहमा य बायरा तह मुणीहि नोवद्दयवा ॥ १३॥ एयं पवयएनिस्संदकप्पमरिहंतदेसियं क्यणं । विक्रवणुच गएहि नहिं विस्तारियं नितम् ॥ १४॥ खंमियपमियाई समुति ते घेझ्याई सयमेव । न गएंति जीवहिंसं समयायारं अवगणिति ॥१५॥ मेहुणमेगतेणं बजियमह तेलाचारनं । साहूण साहुणी समयम्मि य मुलियतत्ताणं ॥१६॥ धारिसु समाएलिंग संगतिविहेण नो विवत्तिा । पूयंति जे जिकिंदं सयं विचित्तहिं मनेहिं ॥ १७ ॥ ते अपहिगारदोसा पन्नता मिवदिक्षिणो दुध । बखिजोश्यो य देवञ्चगा य वीरेण निद्दिा ॥ १०॥ युग्मम् ।। तेसिमणायाराएं शायरियाणं पमायनरियाणं । मज्के मरगयसामसवन्नो कुवषयपहायरि ॥१९॥ परमुबालो गुणेहिं इंसुखचंतचरपरामिझो। पंकाल विरत्तमणो न जमासयसेवन नवरं ॥१०॥ युग्मम् ।। अलाइ सुलतवस्सी अणगारो सारचरणकरणर । संसारजमणजीरुहियां हिय य ससाणं ॥२१॥ न कयावि हुस्सुतं वजारई घर सुकमग्गम्मि । जिणवयणामयवासियचिनो रत्तो चरित्तम्मि ॥॥ वामयायारिखं बुद्धतं हासखिडवयणाई। जपमन्नं पासत्वं खणं पिन सद्देश् सो सूरी ॥ १३ ॥
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