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सप्ततिका
सपदेश॥६५॥
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झासी तत्व निवासी जासी मडुरस्कराण वयलाइ । सुपज्यकंचणवतू वसू सुविकायसिरिसेडी ॥४॥ जाया तस्स सविणया सेहो सिको य नाम तणया । धम्मम्मि साहिखासा सपिवासा परुवयारम्मि ॥५॥ तत्यन्नया कयाऽवि हु संपत्ता सीलचंदसूरिदा। नुवपम्मि नणु दिषिंदा इव जे जबबुरुहबोहे॥६॥ पमिवन्नो तप्पासे पासे मोहस्स विदिऊण खटुं । सेणो सुपितु धम्म दिरक कम्मारिपमिवस्कं ॥ ७॥ वुटवयजयजएणीपाखणपनो गिहम्मि निवसे । सिद्धो सुविसुधमई अईव श्य चिंतिचं खग्गो ॥॥ कश्या नझियगिहवासपासमुम्मूलिकण विसयाणं । गिएिहस्समहं संजममसंजमं दूरमुज्तो ।। ए॥ परिचत्तमित्तसंगो अंगोवंगाई गोविऊण दढं। कुम्मुख सुहकणुशासजलमम्मि चिस्सिं ॥१०॥ कश्याऽहं सुगुरूणं नूणं विणयं समारिस्सामि । पयर्पकयनमरतुलं सेवारसि धरतोय ॥११॥ कश्या सुगुरूहि समं रमंतन संजमम्मि पारामे । नाणाविदेसेर्मु अप्पमिवयो चरिस्सामि ॥१३॥ कश्या परवावारं दुबारं वारिऊप नीसेसं । निस्सेयसपुरमग्गं पविलिस्सामि निरव ॥ १३ ॥ होही दीहो सो कोऽवि कोविर्ड सुझाणेहिं गिरा । उवसमरसनिम्मग्गो रोसकसावं चश्स्सामि ॥ १५ ॥ काळणुबहाणाई महानिहाणा पुन्नरयणाणं । कश्या अंगोवंगाइसुत्तमहयं पढिस्सामि ॥ १५॥ कश्याइमप्पदेहे निरी इलार्व धरित्तु धीरमणो । उवसग्गवग्गमसहं सहिस्समुन्डाहमावनो ॥ १६ ॥ समिईच पंच तहा गुत्तीच तिमि महबए पंच । सीखंगाणारससहसा कया वहिस्सामि ॥ १७॥
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