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श्रो उपासकदमांग सूत्र -४
वाइसि अहेमि, अहेता तब गायं मंसेण य सोणिएण प आधामि जहा णं तुमं अकाले चैव जिविद्याओ बबरोबिज्जसि । एवं मज्झिमयं कणीयसं, एक्क्के पंच सोल्लया, महेव करेइ, जड़ा चुलणीपियरस, पणवरं एक्वेक्के पंच सोल्लया ।
अर्थ - - मध्य रात्रि के समय सुरादेव श्रमणोपासक के समीप एक देव प्रकट हुआ और तीक्ष्ण धार वाली पाड्ग लेकर कहने लगा--' -"हे मुरादेव | यदि तूने भावकव्रत का त्याग नहीं किया, तो तेरे बड़े, मंझले और छोटे- तीनो पुत्रों को तेरे समक्ष मार डालूंगा, उबलते तेल में तल कर उनके पांच-पांच टुकड़े करके तेरे शरीर पर छिड़कूंगा" यावत् उस देव ने वंसा हो किया, तथा सुरादेव ने समभावपूर्वक यह वेदना सहन की और घमं में स्थिर चिप्स रहा 1
सरणं से देवे सुरादेव समणोबासयं चउत्प एवं बयासी - हं मो सुरादेवा ! समणं वासया ! अपस्थिपत्थिया ४ जाव ण परिच्चपसि तो ते अज्ज सरीरंसि जगलमगमेष सोलस सेगायके पस्विवामि तं जहा- मासे फासे (जरे वाह्ने क्रुच्छिसूले भगंदरे अरिसए अजीरए दिट्टिसूले मुद्वसृठे अकारिए अच्छबेणा कण्णवेपणा कंडुए डवरे) कोदें । जहा गं तुमं अहहह-जाब ववरोजिसि । तरणं से सुरादेव समणोबासप जाब बिहरड़ | एवं देवो दोच्चपि लच्यपि भण जाव रोषज्जसि ।
अर्थ- तथ देव बोला- "हे सुरादेव ! यदि तू धर्म का त्याग नहीं करता तो में एक साथ तेरे शरीर में इन सोलह महारोगों का प्रक्षेप करता हूँ-१ प्रवास २ खाँसी ३ जबर ४ वाह ५ कुक्षिशूल ६ भगंदर ७ बबासीर ८ अजीर्ण ६ वृष्टिशूल १० मस्तकशूल ११ अरोचक १२ आँख की वेदना १३ कान की वेदना १४ खाज १५ उदर रोग और १६ कोढ़। जिससे तू आर्त के वशीभूत हो कर अकाल मृत्यु को प्राप्त होगा। उपरोक्त वचन सुम कर भी सुरादेव धर्म से विचलित नहीं हुए । तब देव ने यही बात दूसरी-तीसरी बार कहो ।