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________________ धमणोपासक सुरादेव तए णं तस्स मुरादेवस्स समणोवासपरस तेणं देवेणं योरपि तचापि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अझस्थिए ४ अहो णं इमे पुरिसे अणारीए जाव समायरइ । जेणं ममं जेटुं पुस्तं गाव कणीपस जाप आयचा । जेऽवि य में सोलह रोगायंका तेऽवि य इच्छा मम सरीरंगसि पक्विवित्तए । सेयं वस्तु मर्म एवं पुरिसं गिण्हित्सए तिकटु उद्धाइए । सेऽवि य आगासे उम्पइए, तेण य खम आसाइए महया महया सणं फोलाहले कए। ॥ सत्तमस्स अंगस्स उवासगवसाणं नउत्थं अज्मयणं सम्मप्तं ॥ अचं- उपरोक्त वचन दो-तीन बार सुन कर सुरादेव श्रमणोपासक विचार करने लगा-यह कोई अनार्य पुरुष है, जिसने मेरे तीनों पुत्रों को मार गला। अब सोलह महा. रोगातकों का प्रक्षेप करना चाहता है। इसलिए इस अनार्य पुरुष को पकड़ लेना अच्छा है। ऐसा विचार कर सुरादेव आवेशपूर्वक ललकारता हुआ उसे पकड़ने को प्रपटा, तो यह देव आकाश में उड़ गया और पोषधशाला का संमा ही हाय में आया । तए णं मा धन्ना भारिया कोलाहलं सोचा णिसम्म जेणेव सुरादेवे समणोवासए तेणेव उवागच्छा, उवागरिछस्ता एवं क्यासी-"किपणं देवाणुप्पिया! तुहि महया महया मद्देहि कोलाहले कर ?” नए णं से सुरादेवे समणोवासए धणं मारियं एवं पयासी-"एवं खल देवाणुप्पिए! केऽधि पुरिसे तहेव कहा जहा घुलणीपिया। घण्णाऽवि पडिभणइ जाव कणीयम । णो खलु देवाणुप्पिया! तुम्भ केऽपि पुरिसे सरीरंसि जमगसमगं सोलस-पेगायके पक्खिषह, एम णं कवि पुरिसे तुझं उपसग्गं करेइ।" सेर्स जहा पलापियरस सहा भण। एवं सेसं जहा चुमणीपियरस मिरवसेस जाव सोहम्मे कप्पे अरुणकते विमाणे उपवणे । चत्तारि पलिओषमाई दिई । महाविदेहे वाले सिज्झिहिद ५। णिक्खेषो ॥ सू. ३१ ॥ ___अर्थ-कोलाहल सुन कर सुरावेव की पत्नी घना आई और कारण पूछने लगी। सुरादेव ने सोलह रोगातको सक का सारा विवरण बताया । तब घना कहने लगो
SR No.090457
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhisulal Pitaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year
Total Pages142
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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