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मानन्द पाक- अंतिमार
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११ पीक मूंगफली, एरण्डी, तिल, सरसों, राई, आदि का तेल निकालने की घाणियों, । वैसे तो घाणे, गन्ने पेरने की धाणी, कुएं से पानी निकालने के यंत्र बादि इसमें गिने जाते यंत्र ( मशीन) द्वारा जीवों का जितना पोलन होता है, वे सभी छोटी-बड़ी मिलें, फेक्ट रिथो, बारा-मशीन, कारखाने सभी इस यंत्र पीलनकर्म के ही भेद हैं ।
१२ निर्लाञ्छनकर्म --- बकरी, भेड़ आदि के कान चीरना, घोड़े, बैल आदि को नपुंसक बनाना, नाक में नाथ डालना, ऊँट के नकेल डालना प्रादि कार्य । घोड़े के पथि में खुड़ताल लगाना पोर डाम देना भी इसमें लिया जाता है ।
१३ दवग्निदापनता - बन में सप्रयोजन या निष्प्रयोजन आग लगा कर जलाना । इससे श्रम और स्थावर प्राणियों का महासंहार होता है ।
१४ सर-ब्रहृ-तालाभमोषणता -- चावल, चने आदि की खेती के लिए बचथा अलादाय को खाली करने के लिये तालाब, तलया आदि का पानी बाहर निकाल देना, जिससे त्रस स्थावर प्राणियों की घात होती है ।
१५ असतिजन पोषणता – बाज, कुते भादि पालना, सुरासुन्दरी वाले होटल चलना, गुण्ड पालना, फिल्मों पथवा सिनेमागृहों को पार्थिक सहकार प्रादि में सभी कार्य जिनसे दुःशील एवं दुष्टों का पोषण हो ।
तयाणंतरं चणं अणट्ठादण्डवेरमणस्स समणो वासएणं पंच अश्यारा जाणिवाण समापरियन्या, तं जहा—कंदप्ये, कुक्कुइए, मोहरिए, संजुत्ताहिगरणे, उपभोगपरि भोगाइरिते ।
अर्थ धावक के आठवें व्रत अनर्थदण्डविरमण के पाँच अतिचार जानने योग्य हं, आचरण योग्य नहीं हैं --१ कंदर्प- कामविकार वर्द्धक हास्यावि से ओतप्रोत वचन बोलना २ कौत्कुच्च - हाथ, अक्षि, मुंह आदि की ऐसी चेष्टाएँ, जिनसे लोगों का मनोरंजन हो ३ मोषर्य -- अनर्गल, असंबद्ध, क्लेशवक एवं बहुत बोलना आदि ४ संयुक्ताधिकरण - ऊखल, मूसल, हल, कुदाल, कुल्हाड़ी, फावड़े तो आदि के भिन्न अवयवों को संयुक्त कर रखना (यदि ये वस्तुएं असंयुक्त और पृथक्-पृथक् रखो जाय, तो काम में नहीं आ सकती। अतः संयुक्त नहीं रखनी चाहिए, ताकि मना न करना पड़े) ५ उपभोगपरिभोगातिरिक्त बिना आवश्यकता के उपभोगपरिभोग की सामग्री का अतिरिक्त संचय ।