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श्री उपासकदशीप सूत्र-१
तेल्लेहि अवसेसं सव्वं अन्भंगणविहिं पच्चक्खामि ३ । नयाणंसरं च णं उवणविहिपरिमाणं करेइ, गण्णत्व एगेणं सुरहिणा गंधपणं, अक्सेस उवणबिहिं पच्च. क्खामि ३।
अप-तबन्तर आभ्यंगन विधि का परिमाण करते हैं-'मैं शतपाक-सहस्रपाक सेल के सिवाय अवशेष अभ्यंगन विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
तवन्तर उद्वर्तन विधि का परिमाण करते हैं-मैं गंधाष्टक चूर्ण के सिवाय अवशेष उद्वर्तन विधि का त्याग करता हूँ।
विवेचन-अभ्यंगन का अर्थ है 'मालिश, मसपाक के तीन अर्थ उपलब्ध होते है-सौ पार जो पन्य औषधियों सहित पकाया गया हो २ सो वस्तुएं जिनमें मिलो हो । जिसके निर्माण में सौ स्वर्ण-मुद्राएं व्यय की गई हों । शरीर के मल को दूर कर निर्मल बनाने वाले द्रव्य पीठो आदि जिनमें सेलादि स्निग्ध पदार्थों का मिश्रण होता है, उसे 'उद्वर्तन विधि' कहते हैं। आठ सुगंधित वस्तुओं को मिला कर बनाई गई वस्तु 'सुगन्धित गन्वाष्टक' कही जाती।
तपाणंतरं च ण मज्जणविहिपरिमाणं फरेइ, गण्णन्य अट्टाहं उटिएई उदगस्स घडहि अवसेसं मज्जणधिहि पच्चक्खामि ३ ।
अयं-इसके बाव स्नानविधि का परिमाण करते हैं--'मैं प्रमाणोपेत भाठ घड़ों से अधिक जल का स्नान में प्रयोग नहीं करूंगा।
विशेधन- उट्टिएहि उवगस्त घडएहि-ऊंट के चमड़े से बनी कृपी जिसमें घी तेल भरा जाता था, वैसे माफार का मिट्टी का घड़ा तथा जिसका माप उचित सरकार के घर में समाए जितने जलप्रमाण होता था, ऐसे आठ घड़े प्रमाण जल से अधिक का पानन्दजी ने त्याग कर दिया । सामान्य स्नान में तो वे इमसे भी कम जल का प्रयोग करते थे।
तयाणंतरं ष णं चत्वविहिपरिमाणं करेग, गपणत्य एगेण खोमजुयलेणं अषसेसं पत्थविहिं पच्चक्खामि ।
अर्थ-~-आनन्दजी वस्त्रविधि का परिमाण करते है-'सूती कपड़े का जोड़ाभोपयगल' रखकर शेष पस्त्रविधि का प्रत्याख्यान करना।