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श्रानन्व श्रमणोपासक
मन वचन और काया से।'
विवेचन-- मावश्यक सूत्र में - कन्यालोक ( वर-कव्या आदि के सम्बन्ध में मिच्या भाषण ) गवालीक (गाय प्रादि पशुओं के सम्बन्ध में मिथ्या भाषण ), भूमालिक ( भूमि के सम्बन्ध में मलत्य भाषण ), न्यासापहार ( धरोहर दबाने के लिए झूठ बोलना ) एवं कूटसाक्ष्य (झूठी गवाही) ये पाँच मुरूप भूषावाद बताए गए हैं। श्रावक इस व्रत में इन बड़े झूटों का प्रत्याख्यान करता है ।
तयानंतरं चणं धूलगं अदिष्णादाणं पञ्चखाइ जावज्जीवा? दुबि हूं तिविण न करेमि न कारवैमि मणसा वयसा कापसा ।
अर्थ -- तत्पश्चात् आनन्दजी श्रावक के तीसरे व्रत में स्थूल अदत्तादान का प्रत्याख्यान करते हैं-' में जीवन पर्यंत दो करण और तीन योग से स्थूल अवसावान का सेवन नहीं करूँगा न करवाउंगा, मन वचन और काया से ।'
विवेचन – ' सेंध लगा कर, गाँठ खोल कर बन्द ताले को कुंची द्वारा खोल कर (भ्रयवा तोड़कर) और यह वस्तु अमुक को है' जानकर भी सोयाक सूत्र में बड़ी चोरी ' माना गया है।
तयाणंतरं च णं सवारसंनोसिए परिमाणं करेह, णण्णत्थ एक्काप सिवाणंदाग भारियाए अब सेसं सत्र मेहुणविहि पच्चक्खामि मणला वयसा कापसा ।
अर्थ- चौथे व्रत में आनन्वजी 'स्ववार- संतोष परिमाण' करते हैं- -" में अपनी भार्या सिवाना के अतिरिक्त शेष सभी के साथ मैथुन-विधि का मन वचन और काया से प्रत्याख्यान करता हूँ ।"
त्यानंतरं
णं इच्छाविहिपरिमाणं करेमागे हिरण्ण-सुवण्णविहिपरिमाणं करेs, ruणत्थ चउहि हिरण्णक्रोडीह निहाणपउत्ताहि चहि बुढिपत्ताहि उहि पवित्रपउत्ताहि अवसे सर्व हिरण्ण- सुवण्णविहि पच्चखामि ३ । तयातरं चणं च उत्पद्यविदिपरिमाणं करेंt, route चउहि हदसमोसाहरिगुणं वणं अवसेस सयं उप्पयविहि पच्चक्खामि ३ ।
अर्थ - पाँचवें परिग्रह-परिमाण व्रत में आनन्दनो हिरण्य. स्वर्ण-विधि का परिमाण