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पामग्य अमणोपासक
राजा राज्य करता था। उस नगर में 'आनन्द' नामक सेठ रहता था, जो बहुत धनवान पावत् अपराभूत था । आनन्द के पास चार करोड़ का धन भण्डार में था, चार करोड़ व्यापार में और चार करोड़ की घर-बिसरी थी। चालीस हजार गायों का पशुधन था। बह बहुत-से राज, राजेश्वर, सेठ, सेनापति आदि द्वारा अमेक कार्यों में पूछा जाता था, उससे परामर्श (सलाह) लिया जाता था। अपने कुटुम्ब के लिए भी वह आधारभूत था तथा रामेश्वर मावि दूसरों के लिए भी आधारभूत था एवं सभी कार्य करने वाला था। उसकी पत्नी का नाम 'शिवानन्या' था जो रूपगुण सम्पन्न यो।
विवेचन- विपुल ऋखि समृद्धि वाले को 'गायापति' कहा जाता है । 'अढे नाप अपरिभूप' म 'बाय' पाब्द से इस पाठ का ग्रहण हुमा है--
'अब पिले बिते विछिपणविउलमवणसपणाप्तणणाणवाहणे बहुधणजायस्वरयए आओगपयोग. संपवते विडियपरमत्तपाणे बहवासीदासगीमहिसगोलगप्पभूए मानणस अपरिमूए ।'
(भगवती सूष श. २ ३. ५) अर्प-'पानन्द धनधान्यादि से परिपूर्ण, तेजस्वी, विख्यात, विपुल भवन, शयन, आसन, यान काले, स्वर्ण-रजत आदि प्रचुर धन वाले पोर प्रथलाम के लिए धनादि देने वाले थे। सब के द्वारा भोजन किए जाने पर भी प्रचुर आहार-पानी बचता था। गाय-भैस आदि दुधार जानवर तया नौकर-चाकरों की प्रचुरता थी । बहुत-से लोग मिल कर भी उनका पराभव नहीं कर सकते थे।
'चत्तारि हिरणकोजीओ'--उस समय की प्रचलित स्वर्णमुद्रामों से है । महार में सुरक्षित निधि के रूप में पार करोड़ स्वर्ण मुद्राएं अथवा उत्तने मूल्य के हीरे-जवाहरात आदि रहा करते थे। चार करोड़ स्वर्ण मुद्राओं के मूल्य का धन व्यापार में लगा हुआ था। चार करोड़ का मवशेष परिग्रह पर-बितरी के रूप में फैला हुमा पा।
सरसणं वाणिपगामस्म पहिया उत्तरपुरछिमे दिसीभाए एत्थ कोल्साए णाम सण्णिवेसे होत्था, रिस्थिमिय जाय पासाइए दरिसणिज्जे अभिस्वे पढिरूवे । सत्य णं कोल्लाए सपिणवेसे आणपस्स गाहावइस्स पहुए मित्तणाइणियगसपणसंबंधिपरिजणे परिवसइ, अढे जाप अपरिभूए।
अर्थ- उस वाणिज्यग्राम नगर के ईशान कोण में 'कोल्लाक' नामक उपनगर