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श्री मासकदाग सूत्र
था। यहां आनन्द गायापति के परिवार पाले तमा सर्ग:सम्बन्धी रहा करते थे, जो धनाढ्य यावत् अपरिभूत थे।
ते णं काले णं ते णं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसरिए परिमा णिग्गया, कोणिए राया जाहा तहा जियसत्त णिग्गच्छइ, णिग्गम्छिता जाव पज्जुपासइ । तए णं से आणंदे गाहावइ इमीसे कहाए लढे समाणे एवं खलु समणे जाव विहरइ, तं महाफलं जाप गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि एवं संपेहेहसंपेहिसा पहाए सुद्धप्पावेसाइं जाव अप्पमहग्याभरणालं कियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमह पडिणिक्वमित्ता सकोरंटमल्लदामेणं छत्तणं धरिज्जमाणेणं मणुस्स घरगुरा परिक्खित्ते पापविहारचारेण बाणियगाम गाय माहोणं शिरगच्छा णिग्गच्छित्ता जेषामेव दुइपलासग चेहए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छड उवागच्छित्ता तिक्खुप्तो आयाहिण पयाहिणं फरह करिता चंदइ नमंसद जाव पज्जुवासइ ॥३॥
अर्थ- उस काल उस समय में धमण-मगवान महावीर स्वामी वाणिज्यप्राम नगर के धुतिपलाशक उद्यान में पधारे। कोणिक की मासि जितशत्रु राजा भी पर्युपासना करने लगा। परिषद आई । मानन्द गाथापति को भगवान के पधारने का समाचार मिला तो अपने मित्र-बुंद के साथ भगवान् की सेवा में उपस्थित हमा तथा बन्दनानमस्कार कर पर्युपासना करने लगा।
विषेचन-'तं महाफलं जाव गच्छामि' में निम्न भूषांण का ग्रहण हुआ है...' महाफ मल मो देवाणपिया ! तहाकवाणं अरिहंतागं भगवंताणं णामगोयस्सवि सवल्याए किमंग पुण अभिगमण-बणणमसणं-परिपुन्छण पज्जयासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुक्यणस्स सपणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ?'
पर्ष-हो देवानप्रिय ! तयारूप के मरिहंत भगवंतों के महावीर पादि)नाम और (काश्यप मादि) गौत्र मुनने का भी महान् फल है, फिर उनकी सेवा में जाने, वंदना-नमस्कार करने, मुख-साता पूछने एवं पर्युपासना करने के फल का तो कहना ही क्या ? उनसे एक धार्मिक वचन सुनने का भी महान्-महान् लाभ है, फिर प्रवचन सुन कर विपुल श्रुत प्राप्त करने का तो कहना ही क्या ?