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श्री पासकदशांग पूत्र
दस अजमायणा पण्पत्ता, पड़मस्स णं मंते ! समणेणं जाष संपत्तेणं के अट्टे पपणते ?
भावार्थ-- उस काल उस समय में जब अमण-मगवान् महावीर स्वामी विवर रहे थे, चंपा नामक नगरी थी, पूर्णभद्र नामक उद्यान था। किसी समय मायं सुधर्म-स्वामी वहाँ पधारे । आर्य जम्बूस्वामी ने वन्दना-नमस्कार कर प्रश्न किया-'हे भगवन ! छठे अंग ज्ञाताधर्मकयांग के भाव मैने आप से सुने । हे भगवन् ! सातवें अंग उपासकदशांग में श्रमण-भगवान महावीर स्वामी ने ज्या माव फरम्गए हैं ?' सुधर्मा स्वामी उत्तर देते हैं'हे जंबू ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने उपासकदशांग के इस अध्ययन फरमाए हैं यथा--१ मानंद २ कामदेव ३ चूलणीपिता ४ सुरादेव ५ चुल्लशतक ६ कुणकोलिक ७ सकतालपुन ८ महातक ९ मंघिनौपिता और १० सालिहोपिता ।' अंबूस्वामी ने पूछा'हे भगवन् ! उपासकदशांग के प्रथम अध्ययन में भगवान क्या माव फरमाए हैं ?'
एवं खलु जंबू ! ते णं काले णं ते णं समपणं पाणियगामे णाम णयर होत्या, घण्णाओ, तस्स णं वाणियगामस्स णयरस्स पहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए इ. पलासा णाम चेहए, लत्थ णं वाणियगामे परे जियमत्तु राया होत्या, वण्णओ । तत्थ णं वाणियगामे आणंदे णाम गाहावह परिषसई अड्डे जाव अपरिभ्रए। तरस णं आणंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरपणकोडीओ निहाणपउत्ताओ पत्तारि हिरणकोडीओ वुनिपउत्ताओ चत्तारि हिरणकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ घसारि वया दसगोसाहरिसरणं चाणं होत्था । से णं आणंदे गाहावा पहणं राइसर जाव सत्यवाहाणं बहसु कज्जेस य कारणे सु य मंतेमु य कुटुंबे सु य गुझंसु य रहस्से स य णिच्छएम य ववहारेसु धापुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे, मयस्सवि पणं कुर्बुयस्म मेदी पमाणं आहारे आलंयणं चक्ख मेढीभू" जाव सञ्चालवाहावए यावि होत्था । तरस णं आणंदस्म गाहावड़स्म सिवाणंदा णाम भारिया होत्या, अहीण जाव सुरूवा आणंदम गाहावइस्स इट्टा, आणंदेणं माहावइणा मद्धिं अणुरत्ता अविरत्ता इट्टा सच जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोग पच्चणुभवमाणी विहरह।
भावार्थ--प्रथम अध्ययन प्रारम्भ करते हुए सुधास्वामी फरमाते है--'हे जम्बू ! उस समय 'वाणिज्यग्राम' नामक नगर था । यतिपलाक नामक उद्यान था। वह जितशत्रु