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देवोपमा
पोलामपुराओ जयराओ परिणिक्षमा, परिणिक्खमित्ता पहिया जणवयविहारं बिहरह।
___अर्थ- गोशालक उन दुकानों से पाट-पाटले पाग्या मादि ग्रहण कर रहने लगा। मोति-भांति के सामान्य वचनों, विशेष वचनों, अनुकूल वचनों एवं प्रतिकूल वचनों से भी जब यह मकडालपुत्र को निपथ-प्रवचन से बलित नहीं कर सका, अमित नहीं कर सका, मम-परिणामों से भी विचलित नहीं कर सका, तो यक कर, खेरित हो कर, पोलासपुर से बाहर जनपर में विधरने लगा।
देवोपसर्ग नए णं तस्स सहालपुत्तस्स समणोवासयस्स पहहिं सील० जाप भाषमाणस्स पोरस संबच्छरा घइक्कता। पण्णरसमस्स संबच्छरस्स अंतरा वहमाणस्स पुग्यरत्तापरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स भगवओ महावीरस्म अंतियं धम्मपपणत्ति उवसंपत्तिा णं विहरह। मए णं नरस महालपुत्तस्स ममणोवामपस्स पुब्बरतापरत्तकाले एगे देवे अंतिअंपाउन्मवित्था | नए णं से देवे एर्ग महं जीस्तुप्पल जाव अनि गहाय सहाल पुत्तं समणोषासयं एवं बयासी-जहर घुलणीपियस्स तहेव देवो उवमग्गं करे । णवर एककेक्के पुत्ते णव मंसमोल्लए करेड जाव कणीयसं घापड, धाएहत्ता जाव आयघड़। नए णं से सदालपुत्ते समणोवासए भभीए जाव विहरह।
अर्थ- बहुत-से अणवतों, गणततों आदि से आत्मा को भावित करते हुए सकशलपुत्र को चौदह वर्ष बीत गए। पन्द्रहवें वर्ष में किसी दिन वे पौषधशाला में भगवान को धर्म-विधि की आराधना कर रहे थे। आधीरात के समय एक देव आपा और नीलकमल के समान खड्ग ले कर कहने लगा-"यदि तू धर्म से विचलित नहीं होगा, तो तेरे तीनों पुत्रों के खण्ड-खण्ड कर, उकलते तेल में तल कर तेरे शरीर पर छिड़कंगा मारा वर्णन धूलणी पिता के समान है । विशेषता यह है कि एक-एक पुत्र के नौ-नौ टुकड़े किए यावत् सफडालपुत्र निमंय रह कर धर्माराधमा करते रहे।