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________________ बी उपासनादशांग सूत्र ज्ञाता युवक पुरुष किती बकरे को, मेढ़े को, सूअर, मर्गे, तोतर, बटेर, लावक, कबूतर, कपिजल, कौए अथवा बाज का हाथ, पाय, खुर, पंछ, पंख, सींग या रोम, इनमें से जो मौ अंग पकड़ता है, तो वह लेश-मात्र भी हिल-डुल नहीं सकता। इसी प्रकार अमण मगवान् महावीर स्वामी मी मुझे अर्थ, हेतु, व्याकर ग आदि द्वारा जहाँ-जहाँ पकड़ें, वहां-वहाँ में निरुत्तर हो जाऊं। इसलिए ऐसा कहा कि में घमण भगवान महावीर स्वामी से शास्त्रार्थ करने में असमर्थ हूं। मैं तुम्हें धर्म के उद्देश्य से स्थान नहीं देता नाये सहालगत्ते ममणोवामा गोसाल मंस्खलिपुत्तं एवं घासी"जम्हा णं देवाणुप्पिया! तु मम धम्मायरियस्म जाय महावीरस्म मतेहि सच्चहि तहिहिं सभा भावेहिं गुणकित्तणं करेह तम्हा णं अहं तुम्भे पाहि. हारिएणं पीढ जाव संथारएणं उवणिमंतेमि । णो चेच पं धम्मोत्ति वा तवोति बा। तं गच्छह णं तुम्भ मम कुंभारावणेसु पाडिहारियं पीढ-फलग जाव ओगिणिहत्ताणे ___ अर्थ-सकडालपुत्र ने कहा- "हे भललिपुत्र पोशालक ! आपने मेरे धर्मोपदेशक धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर स्वामी का सत्य, तथ्य, सदमत भावों का यथार्थ गुणकीर्तन किया, अतः म प्रातिहारिक पीठ-फलक आदि का निमंत्रण करता है। परन्तु में इसमें धर्म या तप मान कर देता हूँ, ऐसी बात नहीं है। आप जाइए तथा मेरी दुकानों से इच्छित पीव-फलक आदि ले कर सुख से रहिए।" तए णं से गोमाले मखलिपुत्ते महालपुत्तस्स समगोवामयस्म पयमट्ट पढिसुणेड, पडि मुणित्ता कुंभाराधणेसु पाडिहारियं पीढ जाव ओगिडित्ताणं सिह रह । नए णं से गोसाले मंखलि गुत्ते सहालगुत्तं ममणोवामयं जाहे णो मंचाए पहहि आचवणाहि य पपणवणाहि य सण्णवणाहि विणवणाहि य णिग्गंधाओ पाययणा चालित्ता वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संते संते परितते
SR No.090457
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhisulal Pitaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year
Total Pages142
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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