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________________ १०२ श्री उपासकदशांग मूत्र-७ नए णं से देवे सहालपुत्तं समोवासयं अभीयं जाव पासित्ता बउत्यपि महालपुत्तं समणोपासयं एवं पयासी-"हं भो महालपुत्ता समणोवासया ! अपस्थियपत्थिया जायण मंजसितओ ते जाइमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहा. या धम्मपिजिया धम्माणुरागरसा समसहदुक्खसहाइया तं ते माओ गिहामओ णीणेमि, पीणित्ता मष अग्गओ पाएमि घाइसा णव मंससोल्लए करेमि, करता भादाणभरियसि कडाहयंसि अहमि अहिता नव गायं मंसेण प सोणिएण य आयंचामि । जहा णं तुम अहह जाय ववरोबिज्जमि । तए णं से सहालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अमीए जाब विहरइ। अर्ष-सकबालपुत्र को निभय जान कर चौथी बार देव ने कहा—"हे सकमालपुत्र | मत्यु की इच्छा वाले ! यदि तू शोलवत गणव्रत का परित्याग नहीं करेगा, सो तेरी भार्या अग्निमित्रा जो तेरे लिए धर्म-सहायिका, धर्मानुरागिणी, सुख-दुःख में समान सहायिका है, उसे तेरे घर से लाकर तेरे सामने मार कर उसके नौ मांस खण्ड करूंगा, तथा उकलते हुए कमाह में डाल कर तेरे शरीर पर छिड़कंगा जिससे तू आतध्यान करता हुआ अकाल में ही मत्य को प्राप्त होगा।" ऐसा कहने पर भी सफडालपुत्र निर्भय रहे। तए णं से देवे सहालपुस्तं समणोवामय वोच्चपि तच्चपि एवं बयासीहै भो सहालपुत्ता ममणोवासया सं घेष भणइ । तर णं तस्म महालपुत्तस्स समणोवासयरस तेणं देवेणं वोच्चपि तच्चपि एवं वृत्तस्म समाणस्म अयं अजाथिए ४ समुप्पण्णे । एवं जहा धूलणीपिया तहेब चिंतेइ जेणं ममं जेडं पुस्तं जेणं मम मजिसमयं पुत्तं जेणं ममं कणीयसं पुसं जाव आयं चह, जाऽपि य णं ममामा अग्गिमित्ता भारिया समसुदुक्खमहाइया तं पि य इच्छद साओ गिहाओ गीणेत्ता ममं अग्गओ घाएत्तए । त सेयं खलु मम एयं पुरि गिहित्तए त्ति कटु उद्घाइए। जहा चूलापिया तहेव सर्व भाणियव्वं । णषरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहलं सुणित्ता भणइ । सेस जहा घुलणीपियावत्तव्वया। गवरं मरुणभए बिमाणे उस षण्णे जाव महाविदेहे वासे सिजिहिय। णिक्खेषओ॥ ॥ सत्तमस्स अंगस्म उषासगदसाणं सत्तमं अज्झयणं समतं ।।
SR No.090457
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhisulal Pitaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year
Total Pages142
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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