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________________ ८५ श्री उपासकदशांग सूत्र—७ कर फरमाया-' -" हे सकबालपुत्र | कल दोपहर के समय जब तुम अशोकवाटिका में थे, तब एक देव तुम्हारे पास आया और उसने उपरोक्त बात कहो। तुमनं उसे गोशालक के लिए समझा यावत् उसकी पर्युपासना का विचार किया इत्यादि । यह बात सत्य है ?" सकडालपुत्र ने उत्तर दिया--"हाँ भगवन् ! सत्य है ।" तब भगवान् ने फरमाया-' सकडालपुत्र ! वेब का कथन मंसलिपुत्र गोशालक के लिये नहीं था । लए धणं तस्स सहालपुत्तस्स आजीविओषासगस्स समणेणं भागवया महावीरेणं एवं वुतरस समाणस्स इमेयारूये अज्झत्थिए ४ – ' एस णं समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे जाव तच्चक्रम्मसंपयासंपत्ते । तं सेयं खलु ममं समणं भगवं वंदित्ता णमंसित्ता पाविहारिणं पीढफलग जाव उवनिमंतित्तर ।' एवं संपेहेर, संपेक्षित्ता उद्वार उठेइ उट्टित्ता समणं भगवं महावीरं दह णमंसह, णमंसित्ता एवं वयासी - " एवं खलु भंते! ममं पोलासपुरस्स णपरस्स पहिया पंच कुंभकारावणस या । तत्थ षणं तुग्भे पाडिहारियं पीढ जाव संधारयं ओगिहित्ता णं विरह । तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीवि ओवास गरस एवम पडणे, परिणेत्ता सहालपुत्तस्स आजीविओवासगस्त पंचकुंभकारावणसएस फासृएसणिज्जं पारिहारियं पीडफलग जाव संधारयं ओगिपित्ताणं विरह | अर्थ — सकम्मालपुत्र को भगवान् के वचन सुन कर यह जाल हो गया कि अम भगवान् महावीर स्वामी महामाहन यावत् सर्वज्ञ सर्वदर्शी है। उसने विचार किया कि मुझे अपनी पाँच सौ दुकानें यावत् पीड़-फलक का निमंत्रण देना उचित है। ऐसा सोच कर वंदना नमस्कार करके उसने भगवान् से प्रार्थना को "हे भगवन् ! पोलासपुर नगर के बाहर मेरी पांच सौ दुकानें हैं। आप वहाँ पाट-पाटले ग्रहण कर बिराजे।" भगवान् मे सक बालपुत्र की बात स्वीकार कर के प्रासुक एषणीय पाट-पाटले ग्रहण कर वहाँ रहने लगे । भगवान् और सकाल के प्रश्नोत्तर तपणं से सालपुत्ते बाजीविओवासर अण्णया कयाइ घायाययं को लाल -
SR No.090457
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhisulal Pitaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year
Total Pages142
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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