________________
श्रमणोपासक कुण्डकोलिक
--
I
तपणं कल्लं जाब जलते समणे मग महावीरं जाव समोसारिए, परिसा णिग्गया जाव पज्जुवास । तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओबासर इमीसे कहाए लट्ठे समाणे एवं खलु समाणे भगवं महावीरे जाव विहरइ । तं गच्छामि गं समणं भगवं महावीरं श्रंदामि जाब पज्जुवासामि । एवं संपेहेड संपेहिता पहाए जाव पायच्छिते सुद्धप्पाचे साई जाव अप्पमहग्घा भरणा लंकियसरीरे मणुस्वरपुरापरिगए साओ गिहाओ पडिणिक्खम, पडिणिक्यमित्ता पोलासपुरं यरं म मज्झेणं णिग्गच्छर, णिग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संघवणे उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छ. उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आपाहिणं पयाहिणं करंड, करिता बंद णमंस, वंदित्ता णमंसित्ता जाव पज्जुवामइ ।
-
अर्थ – प्रातः काल होने पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पोलासपुर के सहस्रास्रवन उद्यान में पधारे। परिषद धर्मकथा सुनने के लिए गई, और पर्युपासना करने लगी । सकल पुत्र आजीविकोपासक को ज्ञात हुआ कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे हैं, तो उसने स्नान किया, समा के योग्य वस्त्र धारण किए, वजन में अल्प और मूल्य में ऊंचे आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया और मित्रजनों से घिरा हुआ वह राजमार्ग से सहसावन उद्यान में भगवान् के समीप आया और तीन बार भावर्तनयुक्त वंदना - नमस्कार कर पर्युपासना करने लगा ।
८७
तपणं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तसे य महा जाव धम्म कहा समता । "सहाल पुष्ता इ 1" समणे भगवं महावीरे साल पु आजीविओवासयं एवं वयासी - " से शृणं सङ्गालपुस्ता । कस्लं तुमं पुरुवावरण्डकालमसि जेणेव असोगवणिया जाब बिहरसि, तए णं तुब्भं एगे देवे अंतिय पाउ भविथा, तप णं से देवे अतलिक्लपडिषण्णे एवं बयासी - भो सद्दालपुत्ता ! तं वेव सव्यं जाव पज्जवासिस्सामि । से णूर्ण सहादपुत्ता ! अट्ठे समट्ठे ?” "हंसा अस्थि | णो खलु सालपुष्ता ! तेणं देवेणं गोसालं मंखलितं पणिहाय एवं वृत्ते । अर्थ - - तब भगवान् ने शकडालपुत्र आजीविकोपासक को तथा उस विशाल जनसभा को धर्मकया फरमाई । धर्मकथा समाप्त होने पर भगवान ने कालपुत्र को संबोधित