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________________ लिये सरल है। याका उदय, तुरन्त होय तुरन्त मिटै है । संज्वलन लोभ पतङ्ग के रङ्ग समानि है। जैसे पता रग तुरन्त मिटै, तैसे संज्वलन लोभ उदय होय, अल्प रस देय मिटै है। ऐसे संज्वलन की चौकड़ी अपने उदय होते यथाख्यात-चारित्र नहीं होने देय है। ऐसे तो सामान्य सोलह कषाय जानना आगे नो कषाय ताँ माके उदय जीव के हाँसिक प्रगटेसी हास्य-कम है। जाके उदय जीव पर-वस्तु शुभ लागें सुख उपजावै, सो रति-कर्म है। जाके उदय जीवकं पर-वस्तु जनिष्ट लागे सो अरति-कर्म है। पाके. उदय जीवक चिन्ता शोक होय, सो शोक-कर्म है। जा कम के उदय जीव का उर कम्पायमान होय, पर-वस्तु ते भय उपजे सो भय-कर्म है। जा कर्म के उदय जीवक पर-वस्तु देखि ग्लानि उपजे, सो जुगुप्सा-कर्म है। जा कर्म के उदय जीवकू स्त्रीके स्पर्श करने की अभिलाषा होय, सो पुरुषवेद-कर्म है। जा कर्म के उदय से जीवकू पुरुष के सेवन स्पर्श की इच्छा होय, सो स्त्रीवेद-कर्म है । जा कर्म के उदय युगपत पुरुषस्त्री के स्पर्श की इच्छा रूप भाव होय, सो नपुंसकवेद-कर्म है। ऐसे चारित्रमोह की पचीस कहीं। दर्शनमोह का स्वरूप जागे करेंगे। प्रागे देव आयु का उदय जेते काल रहै, तैते काल देव का शरीर आत्मा ते नहीं छूटै। जाके उदय मनुष्य का शरीर आत्मा ते नहीं छूट, सो मनुष्य बायु है। जा कर्म के उदय जीव तिर्यच गति को न छोड़ि सकै, सो तिर्यच आयु-कम है। जा कर्म के उदय जीव नारको का शरीर नहीं तज सके, सो नारक आयु-कर्म है। ऐसे चार आयु जानना। आगे नाम-कर्म कहिये है, सो प्रथम ही वर्ण चतुष्क की कहैं हैं। सो तहाँ स्पर्श को आठ-जाके उदय शरीर कठोर होय, सी कठोर-कर्म है। शरीर कोमल होय, सो कोमल-कर्म है। शरीर भारी होय, सो भारी-कर्म है। शरीर हलका होय, सो हलकाकर्म है। शरीर उष्ण होय, सो उष्ण-कर्म है। शरीर शीतल होय, सो शीतल-कर्म है। शरीर चिकना होय, सो चिक्कन-कर्म है। शरीर रखा होय, सो सूत-कम है। आगे रस की--जाके उदय शरीर खाटा होय, सो सट्टा-कर्म है। शरीर मिष्ट होय, सो मोठा-कर्म है। शरीर कड़वा होय, सो कड़वा-कर्म है। शरीर कषायला होय, सो कषायला-कर्म है : चिरपरा होय, सो चिरपरा-कर्म है। जागे गन्ध की कहिये—जाके उदय शरीर में सुगन्ध होय, सो सुगन्ध-कर्म है। शरीर में दुर्गन्ध होय, सो दुर्गन्ध-कर्म है। आगे वर्ण कहिय है। - 15
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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