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________________ की गठिी समानि, पवन कटुताई भाव है, नाकाबासनाकाल जाम है; जातें एक बार परिणति में द्वेषभाव होय तो तातै अनन्ते काल में भी निशल्यभाव-सरलता नहीं होय ! सो अनन्तानुबन्धी माया जानना । अनन्तानुबन्धी लोभ, महातीब्र किरम के रङ्ग समान जैसे-वस्त्र फटै परन्तु किरम का रङ्ग नहीं जाय। ऐसा ही यह लोभ है। याका वासनाकाल अनन्त है। एक बार लोम प्रगट भया पीछे अनन्तकाल गर भी समता भावनिर्लोभता नहीं होय। ऐसे र अनन्तानुबन्धी को चौकड़ी ही है। याके फलत धनन्तकाल संसार में भ्रमस नहों मिटे। इनके उदय होते सम्यगभाव नहीं होय। अप्रत्याख्यान की चौकड़ी-तहां अप्रत्याख्यान का क्रोध, सो हल रेखावत। जैसे-हल की रेखा वर्ष, छः महीना में वर्षादि कारणपाय मिटै। तैसें ही यह अप्रत्याख्यान क्रोध मिटै और अप्रत्याख्यान मान अस्थि के स्तम्भ के समान जगतविशेष किए नमै है। तैसे ही यह मान कारणपाय विशेष काल गए पीछे मिटै मी है। अप्रत्याख्यान माया हिरन के सोंगवत गांठिको धरै है। याकी माया बहुत काल गर मिटे है। अप्रत्याख्यान लोम कुशुम्भ के रङ्ग समान है। जैसे—विशेष जतनतें कुशुम्भ रङ्ग मिटे है। तैसे ही बहुत काल गर यह लोभ लाय है। ऐसे यह अप्रत्याख्यान की चौकड़ी, श्रावक के अणुव्रत का स्थान जो पंचमगुण-स्थान ताकौं रोके है थाके उदय में पंचमगुण-स्थान नाही होय है। प्रत्यास्यान की चौकड़ी कहिरा है। तहां प्रत्यास्यान क्रोध गाड़ी की रेखा समानि है । जैसे पांच च्यारि दिन तथा पहर में तथा मास पक्ष में गाड़ी को रेखा मिटि जाय । तैसे ही अल्पकाल में प्रत्याख्यान क्रोध उपशान्त होय प्रत्यास्थान मान कछु मन्द है। जैसा काष्ठ का स्तम्भ अल्प जतन से नमैं तैसे ही, स्तुतिमात्र अल्पकाल में उपशान्त होय है। प्रत्याख्यानी माया मेंढे के सोंग में अल्पगांठि होय तैसे ही इस माया का उदय अल्पकाल होय मिटै। प्रत्यास्थान लोभ है सो हल्दी के रङ्ग समान है। जैसे हल्दी का रङ्गः अल्प जतनत मिटै। तैसे ही प्रत्यास्थान लोभ शीघ्र ही मिटै। ऐसे प्रत्याख्यान की चौकड़ी है। सो अपने उदय मुनि-पद नहीं होने देय है। अब सेज्वलन की चौकड़ी कहिय है—सो संज्वलन कोध महामन्द । जैसे जल रेखा तुरन्त मिट, तैसे यह संज्वलन क्रोध का उदय मिटै है। संज्वलनमान, उदय देय बेत समान तुरन्त || मार्दव भाव होय । जैसे-बेत का स्तम्भ तुरन्त नमै है। संज्वलनमाया, गईया के सींगवत, अल्प बांकी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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