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________________ इनका नाम आवरण कहिये है। ज्ञान नाम तौ जानपने का है। जातें ज्ञेय जानिए, सो तौ ज्ञान है। सो झानपने की अपेक्षा तो एक है। अरु अब एक ज्ञान को जितना-जितना इन पंच ज्ञानावरणीनने आवरण्या है, तेता ज्ञान की पंच भेद करि कल्पना करी है। अरु जब इन भावणीन का मात्र गोयना पेद भाव मिति एक ज्ञान भाव हो रहे है। पंच भेद बानावरणी के निमित्ततें कहिये हैं। ऐसा जानना और दर्शनावरणी प्रकृति नव हैं। सो प्रथम ही चक्षुर्दर्शनावरणी, अचक्षुदर्शनावरसो, अवधिदर्शनावरणो, केवलदर्शनावरसी-ए च्यारि दर्शनावरणी की हैं सो जपने प्रावरणे योग्य दर्शनको आवरणे हैं। निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा, प्रचला- नव दर्शनकौं घात हैं। यहाँ प्रश्न-जो दर्शन तौ च्यारि भेदरूप है और दर्शन को आवरणी नव हैं। सो च्यारि दर्शनावरण तौ च्यारि दर्शनकौं घातें हैं। यह पंच निद्रा काहेकौ घाते हैं। ताका समाधान । च्यारि दर्शन के क्षयोपशम को घातक च्यारि दर्शनावरणी हैं। दर्शन को देखने रूप प्रवृत्ति ताकौ पंच निद्रा घाते हैं। ऐसा जानना। आगे वेदनीय के साता, जसाता-ए दो भेद हैं। सो मोह सहित जीवनकों वेदनीय का उदय साता तो अपना उदय बताय जीवको सुखी करे है और असाता के उदय तें मोही जीव दुखी होय। ऐसा वेदनीय है। मागे मोह-कर्म दोय भेद है-राक दर्शनमोह एक चारित्रमोहः तहां दर्शनमोह के भेद तीन हैं-मिथ्यात्य, सम्यग्मिध्यात्व, सम्यक प्रकृति मिथ्यात्व-ए तीन भेद हैं। चारित्रमोह के पच्चोस तिनके नाम-अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, संज्वलन-इन चारि चौकड़ी के क्रोध, मान, माया, लोम-इन करि सोलह भेद जानना। नव हास्यादिक के नाम-हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेदए पच्चीस चारित्र मोहनीय के हैं। इनका सामान्य अर्थ कहिथे है जहाँ अनन्तानुबन्धी क्रोध, महातीब्र पाषाण की रेखा सामानि । याका वासनाकाल अनन्त भव में भी नहीं जाय जातें एक बार क्रोध भया होय, तौ अनन्ते भव ताई तातें समता भाव नाहीं होय । थाके उदय से प्राणी अनन्तकाल संसार भ्रमै है! सो अनन्तानुबन्धी क्रोध जानना और अनन्तानुबन्धी मान महातीब्र पाषाण स्तम्भ समान । कठोर परिणामी ग्रास देय, पै नमै नाहीं। याका भी वासनाकाल अनन्तकाल है। जातें एक बार मान खण्डना होय, ताक् अनन्तभवन में भी निशल्यभाव करि नमैं नाही, सो अनन्तानुबन्धी मान जानना और अनन्तानुबन्धी माया महातीब्र बोस की जड़
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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