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________________ जाके उदय शरीर सुरख होय, सो लाल-कर्म है । जाके उदय शरीर सब्ज (हरा) होय. सो हरा कर्म है । जाके उदय शरीर श्याम होय, सो श्याम-कर्म है। जाके उदय शरीर पोत होय, सो पोत-कर्म है। जाके उदय शरीर श्वेत होय, सो श्वेत-कर्म है। ऐसे वर्ण चतुष्क हैं। आगे संहनन षट् के नाम - बज्रवृषभनाराच, बज्रनाराच. नाराच, अर्धनाराच, कोलक, स्फाटिक—ए षट् हैं। अब इनका अर्थ--- वृषभ नाम तौ नस का है। अरु नाराच 1 नाम कीली का है। अरु संहनन नाम हाड़ का है। सो जाके उदय नस, हाड़, कोली, बज्रमयी होय, सो बज्रवृषभ fr मी २ नाराच संहनन कर्म है । जाके उदय शरीर में नसें तो बज्ररहित हॉय अरु कोली, हाड़, बज्रमयी होय, सो बज्रनाराच संहनन कर्म है। सन्धनि में दृढ़ कीली होय तोनों ही हाड़, कीली व नसें बज्ररहित जाके उदय होय, सौ नाराच संहनन कर्म है । जाके उदय सन्धनि में अर्ध कीलिका होय, अर्धनाराच संहनन कर्म है। शरीर में कोली रहित हाड़न की नौक ते नौक अड़ी होय, श्ररु गाँठतें दृढ़ होय, सो कीलक संहनन कर्म है। शरीर के हाड़, घास के पूला समानि नशा चांगत दृढ़ि हॉय, सी स्फाटिक- संहनन कर्म है। ऐसे संहनन कर्म है। आगे संस्थान षट् कहिये हैं । तिनके नाम - समचतुरस, न्यग्रोध, परिमण्डल, स्वाति, कुब्जक, वामन, हुंडक – ए षट् हैं। अब इनका अर्थ बताइये है-तहां जा कर्म के उदय शरीर महासुन्दर शास्त्रोक्त प्रमाणमयी अंगोपांग सहित होय, सौ समचतुरस्र संस्थान-कर्म है। जाके उदय शरीर ऊपरि तैं चौड़ा, नीचे तैं कृशि होय, सोन्यग्रोधपरिमण्डल - संस्थान है। शरीर ऊपरि ते कृश अरु नोचे तैं दीर्घ होय, सो स्वाति-कर्म है : शरीर में पीठि, छाती ऊँची होय, सो कुब्जक संस्थान कर्म है। शरीर काल मर्यादा तें बहुत छोटा होय, सो वामन-नाम-कर्म है। शरीर बेघाटि - रुण्डमुण्ड - हीनाधिक अंगोपांग सहित अशुभ होय, सो हुंडक-संस्थान है। आगे च्यारि गि कहिए है -- जाके उदय देव का शरीर होय, सो देव-गति है । जाके उदय मनुष्य शरीर पावै, सो मनुष्यगति -कर्म है और जा कर्म के उदय तिर्यच का शरीर पावै, सो तिर्यंचगति-कर्म है। जा कर्म के उदय नारक शरीर पावै, सो नारक -गति कर्म है। ऐसे गति। आर्गै गत्यानुपूर्वी कहिए है--तहां देवगति में उपजनेहारा मनुष्य अपनी आयु भोग, शरीर तजि, जा कर्म के उदय, ताही मनुष्य के आकार आत्म प्रदेश अन्तराल में राखे और रूप नाहीं होंय, सो देवगत्यानुपूर्वी कर्म है । २ । मनुष्य गति में उपजनेहारा जीव, अनियतगति आवै, सो ११ ६१ रं गि
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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